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उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘पहले तो किसी होटल में ही ठहरना होगा। फिर अन्यत्र रहने का प्रबन्ध कर लूंगा।’’
‘‘आपका वहां पर कोई परिचित नहीं है?’’
‘‘एक परिचय-पत्र तो मैं लाया हूं। परन्तु मैं उन महानुभाव को कष्ट देना नहीं चाहता। वह सम्भवतया कोई जर्मन डॉक्टर हैं।’’
‘‘जर्मन? कौन है वह? कदाचित् मैं आपकी इस विषय में कुछ सहायता कर सकूं।’’
‘‘कोई डॉक्टर स्वायिनी हैं।’’
‘‘स्वायिनी?’’
‘‘हां, उनके नाम की स्पैलिंग इस प्रकार है। एस-डब्लू-ए-एच-एन-ई-वाई-ई।’’
ओह! वे डॉक्टर साहनी हैं। और वे तो हिन्दुस्तानी हैं।’’
‘‘सत्य! परन्तु हम तो साहनी शब्द इस प्रकार नहीं लिखते।’’
‘‘उनके नाम के डब्ल्यू और वाई साइलैंट हैं।’’
मदन हंस पड़ा। अंग्रेजी भाषा में ध्वनि विहीन अक्षरों की बात उसे विदित थी। उसने कहा, ‘‘तब तो मैं उनसे मिलकर मकान की खोज करूंगा।’’
‘‘वह तो बहुत धनी व्यक्ति है। उसकी लड़की मेरी सहेली है।’’
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