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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘बचपन से अपनी दादी के साथ सोने के अतिरिक्त मैं आज तककिसी अन्य के साथ एक ही बिस्तर पर नहीं सोया।’’

‘‘आप यह सत्य कह रहे हैं?’’

‘‘हां।’’

लड़की अपनी बोतल और गिलास ले उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘ओह! यू बूवी!’’ यह कहती हुई वह बाहर निकल गई।

मदन के माथे पर पसीने की बूदें आने लगी थीं। उसने पंखे को तेज किया और द्वार भीतर से बन्द कर पलंग पर लेट गया।

अगले दिन प्रातः का अल्पाहार ले वह हवाई जहाज में बैठने के लिए तैयार हो गया। उसका सामान हवाई जहाज में जा कर चुका था। ठीक समय पर मैकी पाल आई और दोनों हवाई जहाज में जा बैठे।

मिशिगन पहुंच मिस पाल ने कहा, ‘‘मैं इस समय अपने बाबा का स्वास्थ्य समाचार लेने जाने की जल्दी में हूं। आप ‘मिनर्वा’ होटल में ठहर जाइये। मैं बाबा के फार्म से आपको फोन करूंगी।’’

मदन को सामान छुड़ाने में पन्द्रह-बीस मिनट लगने वाले थे, इस कारण पाल उससे अवकाश पा, भागकर अपने बाबा के फार्म की ओर जाने वाली बस में जा बैठी। जब तक मदन सामान छुड़ाकर बाहर निकला, पाल जा चुकी थी।

मदन ने टैक्सी में अपना सामान रखवाया और ‘मिनर्वा’ में जा पहुंचा। यह नगर का सबसे बड़ा होटल था। इसमें लगभग एक हजार कमरे थे। एक व्यक्ति के रहने योग्य कमरे का प्रतिदिन का किराया दो डालर था। खाना तो इसके अतिरिक्त मूल्य में खाया जाता था।

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