उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘क्या देख रहे हो मदन?’’ उसकी दादी ने पूछा।
‘‘इसके तो बहुत ही छोटे नाखून हैं।’’
‘‘हां।’’
‘‘और अम्मा! इसके दांत तो हैं ही नहीं।’’
‘‘हां, नहीं हैं।’’
‘‘तो यह रोटी किस तरह खायेगी?’’
‘‘यह रोटी नहीं खायेगी।’’
‘‘तो क्या खायेगी?’’
‘‘वह देखो, वह रखा है इसके खाने के लिए।’ दादी ने सामने आलने में रखी दूध की बोतल की ओर संकेत कर दिया।
‘‘इसका नाम क्या है अम्मा!’’
‘‘जो तुम रख दो।’’
‘‘कैसे रख दूं!’’
‘‘कोई नाम बोल दो।’’
‘‘कौशल्या।’’
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