उपन्यास >> प्रतिज्ञा (उपन्यास) प्रतिज्ञा (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट-घुटकर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है
सहसा उन्हें एक आश्रय मिल गया और उनके विचारशील, पीले मुख पर हल्की सी सुर्खी दौड़ गयी। यह दान नहीं प्राविडेन्ट फंड है जो आज तक उनकी आमदानी से कटता जा रहा है। सरकार की नौकरी में लोग पेन्शन पाते हैं, क्या वह दान है? उन्होंने जनता की सेवा की है, तन-मन से की है, इस धुन से की है, जो बड़े से बड़े वेतन से भी न आ सकती थी। पेन्शन लेने में क्यों लाज आए?
राजा साहब ने जब थैली भेंट की तो देवकुमार के मुंह पर गर्व था, हर्ष था, विजय थी।
समाप्त
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