उपन्यास >> प्रतिज्ञा (उपन्यास) प्रतिज्ञा (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट-घुटकर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है
बदरी०–अब तुमसे क्या बताऊं। जब मुझे उनके विचार मालूम हो गए, तो मेरा उनके पास जाना अनुचित ही नहीं, अपमान की बात है। आखिर हिन्दू और मुसलमान में विचारों ही का तो अन्तर है। मनुष्य के विचार ही सब कुछ हैं। वह विधवा-विवाह के समर्थक हैं। समझते हैं, इससे देश का उद्धार होगा। मैं समझता हूं, इससे सारा समाज नष्ट हो जाएगा, हम इससे कहीं अधोगति को पहुंच जाएंगे, हिन्दुत्व का रहा-सहा चिह्न भी मिट जाएगा। इस प्रतिज्ञा ने उन्हें हमारे समाज से बाहर कर दिया। अब हमारा उनसे कोई संपर्क नहीं रहा।
देवकी ने इस आपत्ति का महत्त्व नहीं समझा। बोली–यह तो कोई बात नहीं। आज अगर कमला मुसलमान हो जाए, तो क्या हम उसके पास आना-जाना छोड़ देंगे? हमसे जहां तक हो सकेगा, हम उसे समझाएंगे और उसे सुपथ पर लाने का उपाए करेंगे।
देवकी के इस तर्क से बदरीप्रसाद कुछ नरम तो पड़े; लेकिन अपना पक्ष न छोड़ सके। बोले–भाई, मैं तो अमृतराय के पास न जाऊँगा। तुम अगर सोचती हो कि समझाने से वह राह पर आ जाएंगे, तो बुलवा लो या चली जाओ। लेकिन मुझसे जाने को न कहो। मैं उन्हें देखकर शायद आपे से बाहर हो जाऊं। कहो तो जाऊं?
देवकी–नहीं, क्षमा कीजिए। इस जाने से न जाना ही अच्छा। मैं ही कल बुलवा लूंगी।
बदरी०–बुलवाने को बुलवा लो, लेकिन यह मैं कभी पसन्द न करूंगा कि तुम उनके हाथ-पैर पड़ो। वह अगर हमसे एक अंगुल दूर हटेंगे, तो हम उनसे गज भर दूर हट जाएंगे। प्रेमा को मैं उनके गले लगाना नहीं चाहता। उसके लिए वरों की कमी नहीं है।
देवकी–प्रेमा उन लड़कियों में नहीं है कि तुम उसका विवाह जिसके साथ चाहो कर दो। जरा जाकर उसकी दशा देखो तो मालूम हो। जब से यह खबर मिली है ऐसा मालूम होता कि देह में प्राण ही नहीं। अकेले छत पर पड़ी हुई रो रही है।
बदरी०–अजी, दस-पांच दिन में ठीक हो जाएगी।
देवकी–कौन! मैं कहती हूँ कि वह इसी शोक में रो-रोकर प्राण दे देगी। तुम अभी उसे नहीं जानते।
बदरीप्रसाद ने झुंझलाकर कहा–अगर वह रो-रोकर मर जाना चाहती है, तो मर जाए; लेकिन मैं अमृतराय की खुशामद करने न जाऊंगा! जो प्राणी विधवा-विवाह जैसे घृणित व्यवसाय में हाथ डालता है, उससे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता।
बदरीप्रसाद बाहर चले गए। देवकी बड़े असमंजस में पड़ गई। पति के स्वभाव से वह परिचित थी; लेकिन उन्हें इतना विचारशून्य न समझती थी। उसे आशा थी कि अमृतराय समझाने से मान जाएंगे, लेकिन उनके पास जाए कैसे। पति से रार कैसे मोल ले।
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