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प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580
आईएसबीएन :978-1-61301-178

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मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


हरिबिलास ने कुशल समाचार पूछा। ठाकुर ने श्रद्धापूर्ण भाव में कहा, यह भूमि आपके चरणों से पवित्र हो गयी। अब यहाँ सब कुशल है, कल प्रातःकाल पत्र खोला तो आप ही के आनन्द समाचार पर नजर पड़ी। आपके साहस और पुरुषार्थ को धन्य है। मुझे महीनों से ज्वर आता था, पर सच मानिए यह शुभ समाचार देखते ही मैं चंगा हो गया। महीनों से दवाइयाँ खा रहा था, चारपाई से उठना कठिन था आज आपकी सेवा में खड़ा हूँ। यह आपके पदार्पण का शुभ फल है। परमात्मा ने हम लोगों का उद्धार करने के लिए आपके हृदय में यह प्रेरणा की। हमने इधर कुछ दिनों से पंचायत स्थापित की है। उसका कोई ऐसा सरपंच नहीं मिलता था जिस पर जनता का विश्वास हो। आपको परमात्मा ने उसका बेड़ा पार करने के लिए भेजा है। उसके प्रधान का शासन ग्रहण करके हमें उपकृत कीजिए। जूही के राजा साहब बगल के खाँ साहब और राय दुनीचन्द्र उसके सदस्य हैं। मैं उनकी ओर से यह निमन्त्रण लेकर सेवा में आया हूँ।

हरिबिलास ने सकुचाते हुए कहा, आप मुझे इस योग्य समझते हैं यह आपकी कृपा है। पर मैं इस सम्मान का अधिकारी नहीं हूँ। जिस पंचायत के सदस्य ऐसे-ऐसे मानवीय लोग हों उसका प्रधान बनने का साहस मैं नहीं कर सकता।

करनसिंह–बाबू साहब, आप अपने मुँह से ऐसा न कहिए। आप पहले एक परगने के हाकिम थे। आज सहस्त्रों हृदयों पर आपका अधिकार है। क्या छोटे क्या बड़े सब आपको पूज्य समझते हैं। आपको मेरी यह प्रार्थना स्वीकार करनी पड़ेगी।

हरिबिलास इस सम्मान-पद के भार से सिर न उठा सके। करनसिंह ने उठकर फूलों का हार उनके गले में डाल दिया।

इसके बाद करनसिंह एक क्षण तक किसी विचार में डूबे रहे। जान पड़ता था कुछ कहना चाहते हैं, पर संकोच के मारे जबान नहीं खुलती। अन्त में लजाते हुए बोले, बाबू जी मेरी एक प्रार्थना तो आपने मान ली, अब मुझे एक दूसरी प्रार्थना करने का साहस हो रहा है। आज्ञा हो तो कहूँ।
हरिबिलास–शौक से कहिए, मैं सहर्ष आपकी सेवा करूँगा। करनसिंह ने जेब से एक बन्द लिफाफा निकाला और बोले, मैं इसे आपके चरणों पर समर्पण करने की आज्ञा चाहता हूँ। हरिबिलास ने दबी हुई आँखों से लिफाफे की तरफ देखा। लिखा था–

‘‘रेहननामा रामबिलास महतो, मौजा बिदोखर।’

उनकी आँखों में एहसान के आँसू भर आये। कुछ कहना चाहते थे किन्तु करनसिंह ने उन्हें बोलने का अवसर न दिया। उसी दम लिफाफे को फाड़ कर फेंक दिया। और लोग चकित हो रहे थे कि क्या माजरा है! हरिबिलास ने उनकी ओर देखकर कहा–आप लोगों को मालूम हुआ यह कैसा लिफाफा था? यही दादा का लिखा हुआ रेहननामा था यह कहते-कहते उनका कंठ रुक गया।

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