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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582
आईएसबीएन :978-1-61301-112

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


दोनों भाई घर को लौटे। पट्टीदारों के स्वप्न भंग हो गये। हित-मित्र इकट्ठे हुए। ब्रह्मभोज का दिन निश्चित हुआ। पूड़ियाँ पकने लगीं, घी की सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मणों के लिए, तेल की पासी-चमारों के लिए। कालेपानी का पाप इस घी के साथ भस्म हो गया।

दूजी भी कलकत्ते से भाइयों के साथ चली, प्रयाग तक आयी। कुँवर विनयकृष्ण भी उनके साथ थे। भाइयों से कुँवर साहब ने दूजी के सम्बन्ध में कुछ बातें कीं, उनकी भनक दूजी के कानों में पड़ी। प्रयाग में दोनों भाई-बहन रुक गये कि त्रिवेणी में स्नान करते चलें। कुँवर विनयकृष्ण अपने ध्यान में सब ठीक करके मन प्रसन्न करनेवाली आशाओं का स्वप्न देखते हुए चले गये, किंतु फिर वहाँ से दूजी का पता न चला। मालूम नहीं क्या हुई, कहाँ चली गयी। कदाचित् गंगा जी ने उसे अपनी गोद में लेकर सदा के लिए दुःख से मुक्त कर दिया। भाई बहुत रोये-पीटे किन्तु क्या करते! जिस स्थान पर दूजी ने अपने वनवास के चौदह वर्ष व्यतीत किये थे वहाँ दोनों भाई प्रतिवर्ष जाते हैं और उन पत्थरों के ढरों से चिमट-चिमट कर रोते हैं।

कुँवर साहब ने भी पेंशन ले ली। अब चित्रकूट में रहते हैं। दार्शनिक विचारों के पुरुष थे, जिस प्रेम की खोज थी वह न मिला। एक बार कुछ आशा दिखायी दी थी, जो चौदह वर्ष एक विचार के रूप में स्थित रही। एकाएक आशा की धुँधली झलक भी एक बार झिलमिलाते हुए दीपक की भाँति हँस कर सदा के लिए अदृश्य हो गयी।

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