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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582
आईएसबीएन :978-1-61301-112

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


डॉक्टर साहब उसे दूर से देखते ही उठे कि चल कर उसकी खूब मरम्मत करूँ। लेकिन वकील थे, विचार किया कि इसका बयान लेना आवश्यक है। इशारे से निकट बुलाया और पूछा–सुफेदे के पेड़ में कई आम लगे हुए थे। एक भी नहीं दिखायी देता। क्या हो गये?

दुर्गा ने निर्दोष भाव से उत्तर दिया–हुजूर, अभी मैं बाजार गया हूँ, तब तक तो सब आम लगे हुए थे। इतनी देर में कोई तोड़ ले गया हो तो मैं नहीं कह सकता।

डॉक्टर–तुम्हारा किस पर संदेह है?

दुर्गा–सरकार, अब मैं किसे बताऊँ! इतने नौकर-चाकर हैं, न जाने किसकी नियत बिगड़ी हो।

डॉक्टर–मेरा संदेह तुम्हारे ऊपर है, अगर तोड़ कर रखे हों तो ला कर दे दो या साफ साफ कह दो कि मैंने तोड़े हैं, नहीं तो मैं बुरी तरह पेश आऊगा।

चोर केवल दंड से ही नहीं बचना चाहता, वह अपमान से भी बचना चाहता है। वह दंड से उतना नहीं डरता जितना अपमान से। जब उसे सजा से बचने की कोई आशा नहीं रहती, उस समय भी वह अपने अपराध को स्वीकार नहीं करता। वह अपराधी बन कर छूट जाने से निर्दोष बन कर दंड भोगना बेहतर समझता है। दुर्गा इस समय अपराध स्वीकार करके सजा से बच सकता था, पर उसने कहा–हुजूर मालिक हैं, जो चाहें करें, पर मैंने आम नहीं तोड़े। सरकार ही बतायें; इतने दिन मुझे आप की ताबेदारी करते हो गये मैंने एक पत्ती भी छुई है।

डॉक्टर–तुम कसम खा सकते हो?

दुर्गा–गंगा की कसम जो मैंने आमों को हाथ से छुआ भी हो।

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