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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582
आईएसबीएन :978-1-61301-112

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


बुद्धू ने डाक्टर साहब को देख कर तुरंत बोतल छिपा दी और नीचे उतर कर सलाम किया। घर से एक बुढ़िया ने एक मोढ़ा लाकर उनके लिए रख दिया। डाक्टर साहब ने कुछ झेंपते हुए सारी घटना कह सुनायी। बुद्धू ने कहा हुजूर, ये कौन बड़ा काम है। अभी इसी इतवार को दारोगाजी की घड़ी चोरी गयी थी, बहुत कुछ तहकीकात की, पता न चला। मुझे बुलाया। मैंने बात की बात में पता लगा दिया। पाँच रुपये इनाम दिये। कल की बात है, जमादार साहब की घोड़ी खो गयी थी। चारों तरफ दौड़ते फिरते थे। मैंने ऐसा पता दिया कि घोड़ी चरती हुई मिल गयी। इसी विद्या की बदौलत हजूर हुक्काम सभी मानते हैं।

डाक्टर को दारोगा और जमादार की चर्चा न रुची। इन सब गँवारों की आँखों में जो कुछ हैं, वह दरोगा और जमादार ही हैं। बोले–मैं केवल चोरी का पता लगाना नहीं चाहता, मैं चोर को सजा देना चाहता हूँ।

बुद्धु ने एक क्षण के लिए आँखें बन्द कीं, जमुहाइयाँ लीं, चुटकियाँ बजायीं और फिर कहा–यह घर ही के किसी आदमी का काम है।

डाक्टर–कुछ परवाह नहीं, कोई हो।

बुढ़िया–पीछे से कोई बात बने या बिगड़ेगी तो हुजूर हमीं को बुरा कहेंगे।

डाक्टर–इसकी तुम चिंता न करो, मैंने खूब सोच-विचार लिया है! बल्कि अगर घर के किसी आदमी की शरारत है तो मैं उसके साथ और भी कड़ाई करना चाहता हूँ। बाहर का आदमी मेरे साथ छल करे तो क्षमा के योग्य है, पर घर के आदमी को मैं किसी प्रकार क्षमा नहीं कर सकता।

बुद्धू–तो हुजूर क्या चाहते हैं?

डाक्टर–बस यही कि मेरे रुपये मिल जायँ और चोर किसी बड़े कष्ट में पड़ जाय।

बुद्धू–मूठ चला दूँ?

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