लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


बुलाकी–बहुत अच्छा किया तुमने, बकने दिया करो, दस-पाँच दफे मुँह की खाएँगे, तो आप ही बोलना छोड़ देंगे।

भोला–दिन-भर एक-न-एक खुचड़ निकालते रहते हैं। सौ दफे कह दिया कि तुम घर-गृहस्थी के मामले में न बोला करो; पर इनसे बिना बोले रहा ही नहीं जाता।

बुलाकी–मैं जानती कि इनका यह हाल होगा, तो गुरु-मंत्र न लेने देती।

भोला–भगत क्या हुए कि दीन-दुनियाँ-दोनों से गए। सारा दिन पूजा पाठ में ही उड़ जाता है। अभी ऐसे बूढे़ नहीं हो गए कि कोई काम ही न कर सके।

बुलाकी ने आपत्ति की–भोला, यह तो तुम्हारा कुन्याय है। फावड़ा-कुदाल अब उनसे नहीं हो सकता, लेकिन कुछ न कुछ करते ही रहते हैं।

बैलों को सानी पानी देते हैं, गाय दुहाते हैं, और भी जो कुछ हो सकता है करते हैं।

भिझुक अभी तक खड़ा चिल्ला रहा था। सुजान ने जब घर में से किसी को कुछ लाते न देखा, तो उठकर अंदर गया और कठोर स्वर में बोला–तुम लोगों को कुछ सुनाई न देता कि द्वार पर कौन घंटे भर से खड़ा भीख माँग रहा है? अपना काम तो दिन भर करता ही है, एक छन भगवान् का काम भी तो किया करो।

बुलाकी–तुम तो भगवान का काम करने को बैठे ही हो। क्या घर-भर भगवान ही का काम करेगा?

सुजाक–कहाँ आटा रखा है, लाओ मैं ही निकालकर दे आऊँ। तुम रानी बनकर बैठो।

बुलाकी–आटा मैंने मर-मरकर पीसा है, अनाज दे दो। ऐसे मुड़िचरों के लिए पहर-रात से उठकर चक्की नहीं चलाती हूँ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book