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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


कम्पनी का प्रास्पेक्टस बना, कई महीने उसकी खूब चर्चा रही, कई बड़े-बड़े आदमियों ने हिस्से खरीदने के वादे किए, लेकिन न हिस्से बिके न कम्पनी खड़ी हुई। हाँ, इसी धुन में गुरुप्रसाद जी ने एक नाटक की रचना कर डाली, और यह फिक्र हुई कि इसे किसी कम्पनी को दिया जाए। लेकिन यह तो मालूम ही था। कि कम्पनी वाले एक ही घाघ होते हैं। फिर हरेक कम्पनी में उसका एक नाटककार भी होता है। वह कब चाहेगा कि उसकी कम्पनी में किसी बाहरी आदमी का प्रवेश हो। वह इस रचना में तरह-तरह के ऐब निकालेगा और कम्पनी के मालिकों को भड़का देगा। इसलिए प्रबंध किया गया कि मालिकों पर नाटक का कुछ ऐसा प्रभाव जमा दिया जाए कि नाटककार महोदय की कुछ दाल न गल सके। पाँच सज्जनों की एक कमेटी बनाई गयी। उसमें सारा प्रोग्राम विस्तार के साथ तय किया गया और दूसरे दिन पाँचों सज्जन गुरुप्रसाद जी के साथ नाटक दिखाने चले। ताँगे आ गये। हारमोनियम तबला आदि सब उस पर रख दिये गये क्योंकि नाटक का डिमास्ट्रेशन करना निश्चित हुआ था।

सहसा विनोद बिहारी ने कहा–यार, ताँगे पर जाने में तो कुछ बदरोबी होगी। मालिक सोचेगा, यह महाशय यों ही हैं। इस समय दस-पाँच रुपये का मुँह नहीं देखना चाहिए मैं तो अंग्रेरेजों की विज्ञापनबाजी का कायल हूँ। कि रुपये में पद्रह आने उसमें लगाकर शेष एक आने में रोजगार करते हैं। कहीं से दो मोटरे मँगानी चाहिए।

रसिकलाल बोले–लेकिन किराए की मोटरों से यह बात न पैदा होगी। जो आप चाहते हैं। किसी रईस से दो मोटरें माँगनी चाहिए, मारिस हो या नये चाल की आस्टिन।

बात सच्ची थी। भेख से भीख मिलती है विचार होने लगा किस रईस से याचना की जाए? अजी वह महा खूसट है। सबेरे उसका नाम ले लो, तो दिन भर पानी न मिले। अच्छा, सेठजी के पास चले तो कैसा? मुँह धो रखिए उनकी मोटरे अफसरों के लिए रिजर्व हैं, अपने लड़के तक को कभी बैठने नहीं देता, आपको दिए देता है। तो फिर कपूर साहब के पास चलें। अभी उन्होंने नई मोटर ली है। अजी उसका नाम लो, कोई-न-कोई बहाना करेगा। ड्राइवर नहीं है मरम्मत में है।

गुरुप्रसाद ने अधीर होकर कहा–तुम लोगों ने तो व्यर्थ का बखेड़ा खड़ा कर दिया। ताँगों पर चलने में क्या हर्ज था?

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