कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
गुरुप्रसाद–अरे तो कुछ बोहनी-बट्टा तो हो जाए।
मस्त–जी नहीं तब तो जलसा होगा। आज दावत होगी।
विनोद–भाग्य के बली हो तुम गुरुप्रसाद!
रसिक–मेरी राय है, जरा उस ड्रामेटिस्ट को गाँठ लिया जाए। उसका मौन मुझे भयभीत कर रहा है।
मस्त–आप तो वाही हुए हैं। वह नाक रगड़कर रह जाए, तब भी यह सौदा होकर रहेगा। सेठजी अब बचकर निकल नहीं सकते।
विनोद–हम लोगों की भूमिका भी तो जोरदार थी।
अमर–उसी ने तो रंग जमा दिया। अब कोई छोटी रकम कहने का उसे साहस न होगा।
अभिनय
रात को गुरुप्रसाद के घर मित्रों की दावत हुई। दूसरे दिन कोई छः बजे पाँचों आदमी सेठजी के पास जा पहुँचे। संध्या का समय हवाखोरी का है। आज मोटर पर न आने के लिए बना-बनाया बहाना था। सेठजी आज बेहद खुश नजर आते थे। कल की मुहर्रमी सूरत अंतर्धान हो गई थी। बात-बात पर चहकते थे, हँसते थे, फिकरा कसते थे जैसे लखनऊ के कोई रईस हों। दावत का सामान तैयार था। मेजों पर भोजन चुना जाने लगा। अंगूर, संतरे, केले, सूखे मेवे कई किस्म की मिठाईयाँ कई तरह के मुरब्बे; शराब आदि दिए गए और यारों ने खूब मजे से दावत खायी। सेठजी मेहमान-नेवाजी के पुतले बने हुए हरेक मेहमान को आप आ-आकर पूछते–कुछ और मगवाऊँ? कुछ तो और लीजिए। आप लोगों के लायक भोजन यहाँ कहाँ बन सकता है? भोजन के उपरांत लोग बैठे, तो मुआमले की बातचीत होने लगी। गुरुप्रसाद का हृदय आशा और भय से काँपने लगा।
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