कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
गरमी के दिन थे। लीलाधर जी किसी शीतल पार्वत्य-प्रदेश को जाने की तैयारियाँ कर रहे थे कि सैर कि सैर हो जाएगी, और बन पड़ा तो, कुछ चंदा भी वसूल कर लाएँगे। उनको जब भ्रमण की इच्छा होती, तो मित्रों के साथ एक डेपुटेशन के रूप में निकल खड़े होते। अगर एक हजार रुपए वसूल करके वह इसका आधा सैर-सपाटे में भी खर्च कर दें, तो किसी की क्या हानि? हिंदू-सभा को तो कुछ न कुछ मिल ही जाता था। वह उद्योग न करते, तो इतना भी तो न मिलता! पंडितजी ने अबकी सपरवार जाने का निश्चय किया था। जब से ‘शुद्धि’ का आविर्भाव हुआ था, उनकी आर्थिक दशा, जो पहले बहुत शोचनीय रहती थी, बहुत कुछ सँभल गई थी।
लेकिन जाति के उपासकों का ऐसा सौभाग्य कहाँ कि शांति-निवास का आनंद उठा सकें! उनका तो जन्म ही मारे-मारे फिरने के लिए होता है। खबर आयी कि मदरास-प्रांत तबलीगवालों ने तूफान मचा रखा है। हिंदुओं के गाँव के गाँव मुसलमान होते जाते हैं। मुल्लाओं ने बड़े जोश से तबलीग का काम शुरू किया है। अगर हिंदु-सभा ने इस प्रवाह को रोकने की आयोजना न की तो सारा प्रांत हिंदुओं से शून्य हो जायगा–किसी शिखाधारी की सूरत न नजर आएगी।
हिंदू-सभा में खलबली मच गई। तुरंत एक विशेष अधिवेशन हुआ और नेताओं के सामने यह समस्या उपस्थित की गई। बहुत सोच-विचार के बाद निश्चय हुआ कि चौबेजी पर इस कार्य का भार रखा जाए। उनसे प्रार्थना के जाए कि वह तुरंत मदरास चले जाएँ, धर्म-विमुख बंधुओं का उद्धार करें। कहने ही की देर थी। चौबेजी तो हिंदू-जाति की सेवा के लिए अपने को अर्पण कर ही चुके थे; पर्वत-यात्रा का विचार रोक दिया, और मदरसा जाने को तैयार हो गए। हिंदू-सभा के मंत्री ने आँखों में आसू भरकर उनसे विनय की कि महाराज, यह बीड़ा आप ही उठा सकते हैं। आप ही को परमात्मा ने इतनी सामर्थ्य दी है। आपके सिवा ऐसा कोई दूसरा मनुष्य भारतवर्ष में नहीं है जो इस घोर विपत्ति में काम आए। जाति की दीन-हीन दशा पर दया कीजिए।
चौबेजी इस प्रार्थना को अस्वीकार न कर सके। फौरन सेवकों की मंडली बनी, और पंडितजी के नेतृत्व में रवाना हुई। हिंदू-सभा ने उसे बड़ी धूम से विदाई का भोज दिया। एक उदार रईस ने चौबेजी को एक थैली भेंट की और रेल-स्टेशन पर हजारों आदमी उन्हें विदा करने आये।
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