लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


मैं अभी इस विस्मय में पड़ा हुआ था। कि डिप्टी कमिश्नर ने सिर उठाया और मेरी तरफ देखकर कहा। आपने शायद मुझे पहचाना नहीं? इतना सुनते ही मेरे स्मृति नेत्र खुल गये, बोला–आपका नाम सूर्य प्रकाश तो नहीं है।?

‘जी हाँ मैं आपका वही अभागा शिष्य हूँ।’

‘बारह तेरह वर्ष हो गए!’

सूर्यप्रकाश ने मुस्कराकर कहा–अध्यापक लड़कों को भूल जाते हैं पर लड़के हमेशा उन्हें याद रखते हैं।

मैंने उसी विनोद के भाव से कहा। तुम जैसे लड़के को भूलना असम्भव है।

सूर्यप्रकाश ने विनीत स्वर में कहा–उन्हीं अपराधों को क्षमा कराने के लिए सेवा में आया हूँ। मैं सदैव आपकी खबर लेता रहता था। जब आप इँगलैंड गये तो मैंने आपके लिए बधाई का पत्र लिखा; पर उसे भेज न सका। जब आप प्रिंसिपल हुए, मैं इंगलैंड जाने को तैयार था। वहाँ मैं पत्रिकाओं में आपके लेख पढ़ता रहता था। जब लौटा, तो मालूम हुआ कि आपने इस्तीफा दे दिया कहीं देहात में चले गये हैं। इस जिले में आये हुए मुझे एक वर्ष से अधिक हुआ पर इसका जरा भी अनुमान न था आप यहाँ एकांतसेवन कर रहे हैं। ऊजड़ गाँव में आपका जी कैसे लगता है? इतनी ही अवस्था में आपने वानप्रस्थ ले लिया?

मैं नहीं कह सकता कि सूर्यप्रकाश की उन्नति देखकर मुझे कितना आश्चर्यमय आनन्द हुआ। अगर मेरा पुत्र होता, तो भी इससे अधिक आनंद न होता मैं उसे अपने झोपड़े में लाया और अपनी रामकहानी कह सुनाई।

सूर्यप्रकाश ने कहा–तो यह कहिए कि आप अपने ही एक भाई के विश्वासघात का शिकार हुए। मेरा अनुभव तो अभी बहुत कम है; मगर इतने में ही मुझे मालूम हो गया कि हम लोग अभी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना नहीं जानते। मिनिस्टर साहब से भेंट हुई, तो पूछूँगा कि यही आपका धर्म था?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book