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प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :257
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8586
आईएसबीएन :978-1-61301-114

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मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ


यह सुनते ही रमणी का मुख-सूर्य कांतिहीन हो गया। मैंने तो चर्चा इसलिए कर दी थी, जिससे प्रकट हो जाय कि यहाँ आने में मुझे भी कुछ त्याग करना पड़ा है, पर मुझे ऐसा मालूम हुआ कि इस चर्चा से उसे कोई विशेष दुःख हुआ। पर क्षण-भर में सूर्य-मंडल से बाहर निकल आया, बोली–यह स्थान अपनी रमणीयता के कारण बहुधा लोगों की आँखों में खटकता है। गुण का निरादर करनेवाले सभी जगह होते हैं और यदि जलवायु कुछ हानिकर हो भी, तो आप जैसे बलवान मनुष्य को इसकी क्या चिन्ता हो सकती है। रहे विषैले जीव-जंतु, वह अपने नेत्रों के सामने विचर रहे हैं। अगर मोर, हिरन और हंस विषैले जीव हैं, जो निस्संदेह यहाँ विषैले जीव बहुत हैं।

मुझे संशय हुआ कहीं मेरे कथन से उसका चित्त खिन्न न हो गया हो। गर्व से बोला–इन गाइड-बुकों पर विश्वास करना सर्वथा भूल है।

इस वाक्य से सुंदरी का हृदय खिल गया, बोली–आप स्पष्टवादी मालूम होते हैं और यह मनुष्य का एक उच्च गुण है। मैं आपका चित्र देखते ही इतना समझ गई थी। आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि इस पद के लिए मेरे पास एक लाख से अधिक प्रार्थनापत्र आये थे। कितने एम० ए० थे, कोई डी० एस० सी० था, कोई जर्मनी से पी-एच० डी० उपाधि किए हुए था, मानो यहाँ मुझे किसी दार्शनिक विषय की जाँच करवानी थी मुझे अबकी ही यह अनुभव हुआ कि देश में उच्च-शिक्षित मनुष्यों की इतनी भरमार है। कई महाशयों ने स्वरचित ग्रंथों की नामावली लिखी थी, मानो देश में लेखकों और पंडितों ही की आवश्यकता है। उन्हें कालगति का लेशमात्र भी परिचय नहीं है। प्राचीन धर्म-कथाएँ अब केवल अंधभक्तों के रसास्वादन के लिए ही हैं, उनसे और कोई लाभ नहीं है। यह भौतिक उन्नति का समय है। आजकल लोग भौतिक सुख पर अपने प्राण अर्पण कर देते हैं। कितने ही लोगों ने अपने चित्र भी भेजे थे। कैसी-कैसी विचित्र मूर्तियाँ थीं, जिन्हें देख कर घंटों हँसिए। मैंने उन सभी को एक अलबम में लगा लिया है और अवकाश मिलने पर जब हँसने की इच्छा होती है, तो उन्हें देखा करती हूँ। मैं उस विद्या को रोग समझती हूँ, जो मनुष्य को बनमानुष बना दे। आपका चित्र देखते ही आँखें मुग्ध हो गईं। तत्क्षण आपको बुलाने को तार दे दिया।

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