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प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :257
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8586
आईएसबीएन :978-1-61301-114

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मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ


उस रात को मुझे देर तक नींद नहीं आयी। उधेड़बुन में पड़ा हुआ था। कभी जी चाहता, आओ आँख बंद करके प्रेम-रस का पान करें, संसार के पदार्थों का सुख भोगें, जो कुछ होगा, देखा जाएगा।

जीवन में ऐसे दिव्य अवसर कहाँ मिलते हैं? फिर आप-ही-आप मन खिंच जाता था, घृणा उत्पन्न हो जाती थी।

रात के दस बजे होंगे कि हठात् मेरे कमरे का द्वार आप-ही-आप खुल गया और वही तेजस्वी पुरुष अंदर आये। यद्यपि मैं अपनी स्वामिनी के भय से उनसे बहुत कम मिलता था, पर उनके मुख पर ऐसी शांति थी और उनके भाव ऐसे पवित्र तथा कोमल थे कि हृदय में उनके सत्संग की उत्कंठा होती थी। मैंने उनका स्वागत किया और लाकर एक कुरसी पर बैठा दिया। उन्होंने मेरी ओर दयापूर्ण भाव से देखकर कहा–मेरे आने से तुम्हें कष्ट तो नहीं हुआ?

मैंने सिर झुकाकर उत्तर दिया–आप-जैसे महात्माओं का दर्शन मेरे सौभाग्य की बात है।

महात्माजी निश्चिंत होकर बोले–अच्छा, तो सुनो और सचेत हो जाओ, मैं तुम्हें यह चेतावनी देने के लिए आया हूं। तुम्हारे ऊपर एक घोर विपत्ति आने वाली है। तुम्हारे लिए इस समय इसके सिवाय और कोई उपाय नहीं है कि यहाँ से चले जाओ। यदि मेरी बात न मानोगे, तो जीवन पर्यन्त कष्ट झेलोगे और इस मयाजाल से कभी मुक्त न हो सकोगे। मेरा झोपड़ा तुम्हारे समाने था, मैं भी कभी-कभी यहाँ आया करता था, पर तुमने मुझसे मिलने की आवश्यकता न समझी। यदि पहले ही दिन तुम मुझसे मिलते, तो सहस्रों मनुष्यों का सर्वनाश करने के अपराध से बच जाते। निस्संदेह तुम्हारे कर्मों का फल है, जिसने आज तुम्हारी रक्षा की। अगर यह पिशाचिनी एक बार तुमसे प्रेमालिंगन कर लेती, तो फिर तुम कहीं के नहीं रहते। तुम उसी दम उसके अजायबखाने में भेज दिये जाते। वह जिस पर रीझती है, उसकी यही गत बनाती है। यही उसका प्रेम है। चलो, इस अजायब घर की सैर करो, तब तुम समझोगे कि आज किस आफत से बचे।

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