लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :257
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8586
आईएसबीएन :978-1-61301-114

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

358 पाठक हैं

मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ


कैलासी ने सगर्व दीनता से उत्तर दिया–हाँ, यहाँ क्या करूं, जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं। मालूम नहीं, कब आँख बन्द हो जायँ। परमात्मा के यहाँ मुँह दिखाने का भी तो कोई उपाय होना चाहिए। रुद्र बाबू अच्छी तरह हैं?

इंद्रमणि–अब तो जा ही रही हो। रुद्र का हाल पूछकर क्या करोगी? उसे आशीर्वाद देती रहना।

कैलासी की छाती धड़कने लगी। घबराकर बोला–उनका जी अच्छा नहीं है क्या?

इंद्रमणि–वह तो उसी दिन से बीमार है, जिस दिन तुम वहाँ से निकलीं। दो हफ्ते तक उसने अन्ना-अन्ना की रट लगायी। एक हफ्ते से खाँसी और बुखार मे पड़ा है। सारी दवाइयाँ करके हार गया, कुछ फायदा नहीं हुआ। मैंने सोचा कि चलकर तुम्हारी अनुनय-विनय करके लिवा लाऊँगा। क्या जाने तुम्हें देखकर उसकी तबीयत सँभल जाय। पर तुम्हारे घर पर आया, तो मालूम हुआ कि तुम यात्रा करने जा रही हो। अब किस मुँह से चलने को कहूँ? तुम्हारे साथ सलूक ही कौन-सा अच्छा किया था, जो इतना साहस करूँ? फिर पुण्य कार्य में विघ्न डालने का भी डर है। जाओ, उसका ईश्वर मालिक है। आयु शेष है तो बच ही जाएगा, अन्यथा ईश्वरीय गति में किसी का क्या वश?

कैलासी की आँखों के सामने अँधेरा छा गया। सामने की चीजें तैरती हुई मालूम होने लगीं। हृदय भावी अशुभ की आशंका से दहल गया। हृदय से निकल पड़ा–‘या ईश्वर, मेरे रुद्र का बाल बाँका न हो।’ प्रेम से गला भर आया। विचार किया कि मैं कैसी कठोर हृदय हूँ। प्यारा बच्चा रो-रोकर हलकान हो गया और मैं उसे देखने तक नहीं गयी। सुखदा का स्वभाव अच्छा नहीं, न सही, किंतु रुद्र ने मेरा क्या बिगाड़ा था कि मैंने माँ का बदला बेटे से लिया। ईश्वर, मेरा अपराध क्षमा करो। प्यारा रुद्र मेरे लिए हुड़क रहा है। (इस ख्याल से कैलासी का कलेजा मसोस उठा और आँखों से आँसू बह निकले।) मुझे क्या मालूम था कि उसे मुझसे इतना प्रेम है! नहीं मालूम, बच्चे की क्या दशा है। भयातुर हो बोली–दूध तो पीते हैं न?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book