कहानी संग्रह >> प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह) प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ
रुद्र ने आँखे खोलीं, क्षण-भर दाई को चुपचाप देखता रहा, तब यकायक दाई के गले से लिपट कर बोला–अन्ना आई! अन्ना आई!!
रुद का पीला मुरझाया हुआ चेहरा खिल उठा, जैसे बुझते हुए दीपक में तेल पड़ जाए। ऐसा मालूम हुआ, मानो वह कुछ बढ़ गया है।
एक हफ्ता बीत गया। प्रातःकाल का समय था। रुद्र आँगन में खेल रहा था। इंद्रमणि ने बाहर से आकर उसे गोद में उठा लिया और प्यार से बोले–तुम्हारी अन्ना को मारकर भगा दें।
रुद्र ने मुँह बनाकर कहा–नहीं, रोएगी।
कैलासी बोला–क्यों बेटा, तुमने तो मुझे बद्रीनाथ नहीं जाने दिया। मेरी यात्रा का पुण्य-फल कौन देगा?
इंद्रमणि ने मुस्कराकर कहा–तुम्हें उससे कहीं अधिक पुण्य हो गया। यह तीर्थ महातीर्थ है।
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