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कहानी संग्रह >> प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :257
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8586
आईएसबीएन :978-1-61301-114

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मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ


साँझ हो गई थी। बैल दिन-भर के थके-माँदे सिर झुकाए चले आते थे। पुजारी ने ठाकुरद्वारे में घंटा बजाना शुरू किया। आजकल फसल के दिन है। रोज पूजा होती है। जादोराय खाट पर बैठे नारियल पी रहे थे। शिवगौरी रास्ते में खड़ी उन बैलों को कोस रही थी, जो उसके भूमिस्थ विशाल भवन का निरादर करके उसे रौंदते चले जाते थे। घड़ियाल और घंटे की आवाज सुनते ही जादोराय भगवान का चरणामृत लेने के लिए उठे ही थे कि उन्हें अकस्मात् एक नवयुवक दिखाई पड़ा, जो भूंकते हुए कुत्तों को दुतकारता, बाईसिकल को आगे बढ़ाता हुआ चला आ रहा था। उसने उनके चरणों पर अपना सिर रख दिया। जादोराय ने गौर से देखा और तब दोनों एक दूसरे से लिपट गए। माधो भौंचक होकर बाईसिकल को देखने लगा। शिवगौरी रोती हुई घर में भागी और देवकी से बोली–दादा को साहब ने पकड़ लिया है। देवकी घबरायी हुई बाहर आयी। साधो उसे देखते ही उसके पैरों पर गिर पड़ा। देवकी छाती से लगाकर रोने लगी। गाँव के मर्द, औरतें और बच्चे सब जमा हो गए। मेला-सा लग गया।

साधो ने अपने माता-पिता से कहा–मुझ अभागे से जो कुछ अपराध हुआ हो, उसे क्षमा कीजिए। मैंने अपनी नादानी से स्वयं बहुत कष्ट उठाए और आप लोगों को भी दुःख दिया, लेकिन अब मुझे अपनी गोद में लीजिए।

देवकी ने रोकर कहा–जब हमको छोड़कर भागे थे, तो हम लोग तुम्हें तीन दिन तक बे-दाना-पानी के ढूँढ़ते रहे, पर जब निराश हो गए, तब अपने भाग्य को रोकर बैठ रहे। तब से आज तक कोई ऐसा दिन न गया कि तुम्हारी सुधि न आयी हो। रोते-रोते एक युग बीत गया; अब तुमने खबर ली है। बताओ बेटा! उस दिन तुम कैसे भागे और कहां जाकर रहे?

साधो ने लज्जित होकर उत्तर दिया–माताजी, अपना हाल क्या कहूँ! मैं पहर रात रहे, आपके पास से उठकर भागा। पादरी साहब के पड़ाव का पता शाम ही को पूछ लिया था। बस पूछता हुआ उनके पास दोपहर को पहुँच गया। साहब ने मुझे पहले समझाया कि अपने घर लौट जाओ, लेकिन जब मैं किसी तरह राजी न हुआ, तो उन्होंने मुझे पूना भेज दिया। मेरी तरह वहाँ सैकड़ों लड़के थे। वहाँ बिस्कुट और नारंगियों का भला क्या जिक्र! जब मुझे आप लोगों की याद आती, मैं अक्सर रोया करता। मगर बचपन की उम्र थी, धीरे-धीरे उन्हीं लोगों से हिल-मिल गया। हाँ, जब से कुछ होश हुआ है और अपना-पराया समझने लगा हूँ, तब से अपनी नादानी पर हाथ मलता रहा हूँ। रात-दिन आप लोगों की रट लगी हुई थी। आज आप लोगों के आशीर्वाद से यह शुभ दिन देखने को मिला। दूसरों में बहुत दिन काटे, बहुत दिनों तक अनाथ रहा। अब मुझे अपनी सेवा में रखिए। मुझे अपनी गोद में लीजिए। मैं प्रेम का भूखा हूँ। बरसों से मुझे जो सौभाग्य नहीं मिला, वह अब दीजिए।

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