कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
मैं–पहले बूझ जाओ।
विद्याधरी–सुहाग की पिटारी होगी?
मैं–नहीं, उससे अच्छी।
विद्याधरी–ठाकुर जी कि मूर्ति?
मैं–नहीं उससे भी अच्छी।
विद्याधरी–मेरा प्राणाधार का कोई समाचार?
मैं–उससे भी अच्छी।
विद्याधरी प्रबल आवेग से व्याकुल होकर उठी कि द्वार पर जाकर पति का स्वागत करे, किन्तु निर्बलता ने मन की अभिलाषा न निकलने दी। तीन बार सँभली और तीन बार गिरी। तब मैंने उसका सिर अपनी गोद में रख लिया और आँचल से हवा करने लगी। उसका हृदय बड़े वेग से धड़क रहा था और पति–दर्शन का आनंद आँखों से आसूँ बनकर निकलता था।
जब जरा चित्त सावधान हुआ, तो उसने कहा–उन्हें बुला लो, उनका दर्शन मुझे रामबाण हो जाएगा।
ऐसा ही हुआ। ज्यों ही पंडितजी अंदर आये, विद्याधरी उठकर उनके पैरों से लिपट गई। देवी ने बहुत दिनों के बाद पति के दर्शन पाए हैं। अश्रुधारा उनके पैर पखार रही है।
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