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प्रेमाश्रम (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :896
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8589
आईएसबीएन :978-1-61301-003

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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है


सुक्खू– पटवारी सैकड़े-हजार की गठरी थोड़े ही उड़ाता है जब बहुत दाँव-पेंच किया तो दो-चार रुपए मिल गये। उसकी तनख्वाह तो कानूनगोय ले लेते हैं। इसी छीन-झपट पर निर्वाह करता है, तो देह कहाँ से फूलेगी? तकाबी में देखा नहीं, तहसीलदार साहब ने हजारों पर हाथ फेर दिया।

दुखरन– कहते हैं कि विद्या से आदमी की बुद्धि ठीक हो जाती है, पर यहाँ उलटा ही देखने में आता है। यह हाकिम और अमले तो पढ़े-लिखे विद्वान होते हैं, लेकिन किसी को दया-धर्म का विचार नहीं होता।

सुक्खू– जब देश के अभाग आते हैं तो सभी बातें उलटी हो जाती हैं। जब बीमार के मरने के दिन आ जाते हैं तो औषधि भी औगुन करती है।

मनोहर– हमीं लोग तो रिसवत देकर उनकी आदत बिगाड़ देते हैं। हम न दें तो वह कैसे पाएँ! बुरे तो हम हैं। लेने वाला मिलता हुआ धन थोड़े ही छोड़ देगा? यहाँ तो आपस में ही एक दूसरे को खाये जाते हैं। तुम हमें लूटने को तैयार, हम तुम्हें लूटने को तैयार। इसका और क्या फल होगा?

दुखरन– अरे तो हम मूरख, गँवार, अपढ़ हैं, वह लोग तो विद्वान हैं। उन्हें न सोचना चाहिए कि यह गरीब लोग हमारे ही भाई-बन्द हैं। हमें भगवान ने विद्या दी है, तो इन पर निगाह रखें। इन विद्यावानों से तो हम मूरख ही अच्छे! अन्याय सह लेना अन्याय करने से तो अच्छा है।

सुक्खू– यह विद्या का दोष नहीं, देश का अभाग है।

मनोहर– न विद्या का दोष है, न देश का अभाग; यह हमारी फूट का फल है। सब अपना दोष है। विद्या से और कुछ नहीं होता तो दूसरों का धन ऐंठना तो आ जाता है। मूरख रहने से तो अपना धन गँवाना पड़ता है।

सुक्खू– हाँ, तुमने यह ठीक कहा कि विद्या से दूसरों का धन लेना आ जाता है। हमारे बड़े सरकार जब तक रहे दो साल की मालगुजारी बाकी पड़ जाती थी, तब भी डाँट-डपट कर छोड़ देते थे। छोटे सरकार जब से मालिक हुए हैं, देखते हो कैसा उपद्रव कर रहे हैं। रात-दिन जाफा, बेदखली, अखराज की धूम मची हुई है।

दुखरन– कारिन्दा साहेब कल कहते थे कि अबकी इस गाँव की बारी है, देखो क्या होता है?

मनोहर– होगा क्या, तुम हमारे खेत चढ़ोगे, हम तुम्हारे खेत पर चढ़ेंगे, छोटे सरकार की चाँदी होगी। सरकार की आँखें तो तब खुलतीं जब कोई किसी के खेत पर दाँव न लगाता। सब कौल कर लेते। लेकिन यह कहाँ होने वाला है। सबसे पहले सुक्खू महतो दौड़ेंगे।

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