सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास) प्रेमाश्रम (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
8 पाठकों को प्रिय 370 पाठक हैं |
‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है
दयाशंकर– (हँसकर) आपके पसीने के दाग तो न होंगे, हाँ असामियों के खूने जिगर के दाग हैं।
दस बजे रिपोर्ट तैयार हो गयी। दो दिन तक सारे गाँव में कुहराम मचा रहा। लोग तलब हुए। फिर सबके बयान हुए। अन्त में सबसे सौ-सौ रुपये के मुचलके ले लिये गये। कादिर खाँ का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया।
शाम हो गयी थी। बाबू ज्वालासिंह शिकार खेलने गये हुए थे। फैसला कल सुनाया जाने वाला था। गौस खाँ ईजाद हुसेन के पास आकर बैठ गये और बोले, क्या डिप्टी साहब अभी शिकार से वापस नहीं आये?’
ईजाद हुसेन– कहीं घड़ी रात तक लौटेंगे। हुकूमत का मजा तो दौरे में ही मिलता है। घण्टे आध घण्टे कचहरी की, बाकी सारे दिन मटरगश्ती करते रहे रोजनामचा भरने को लिख दिया, परताल करते रहे।
गौस खाँ– आपको तो मालूम ही हुआ होगा, दारोगा जी ने मुझे आज खूब पथा।
ईजाद– इन हिन्दुओं से खुदा समझें। यह बला के मतअस्सिब होते हैं। हमारे साहब बहादुर भी बड़े मुन्सिफ बनते हैं, मगर जब कोई कोई जगह खाली होती है तो वह हिन्दू को ही देते हैं। अर्दली चपरासी मजीद को आप जानते होंगे। अभी हाल में उसने जिल्दबन्दी की दुकान खोल ली, नौकरी से इस्तीफा दे दिया। आपने उसकी जगह एक गँवार अहीर को मुकर्रर कर लिया। है तो अर्दली चपरासी, पर उसका काम है गायें दुहना, उन्हें चारा-पानी देना। दौरे के चौकीदारों में दो कहार रख लिये हैं। उनसे खिदमतगारी का काम लेते हैं। जब इन हथकण्डों से काम चले तो बेगार की जरूरत ही क्या? हम लोगों को अलबत्ता हुक्म मिला है। बेगार न लिया करो।
सूर्य अस्त हुए। खाँ साहब को याद आ गया कि नमाज का वक्त गुजरा जाता है वजू किया और एक पेड़ के नीचे नमाज पढ़ने लगे।
इतने में बिसेसर साह ने रावटी के द्वार पर आकर अहलमद साहब को अदब से सलाम किया। स्थूल शरीर, गाढ़े की मिर्जई, उस पर गाढ़े की दोहर, सिर पर एक मैली-सी पगड़ी, नंगे पाँव, मुख मलिन, स्वार्थपूर्ण विनय की मूर्ति बने हुए थे। एक चपरासी ने डाँट कर कहा, यहाँ घुसे चले आते हो? कुछ अफसरों का अदब-लिहाज भी है?
बिसेसर साह दो-तीन पग पीछे हट गये और हाथ बाँधकर बोले– सरकार एक बिनती है। हुक्म हो तो अरज करूँ।
ईजाद– क्या कहते हो। तुम लोगों के मारे तो दम मारने की फुर्सत नहीं जब देखो, एक-न-एक आदमी शैतान की तरह सिर पर सवार रहता है।
|