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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600
आईएसबीएन :978-1-61301-119

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


जॉन सेवक–यही तो इस ड्रामा का सबसे लज्जास्पद अंश है।

महेंद्रकुमार–लज्जास्पद नहीं महाशय, घृणास्पद कहिए।

जॉन सेवक–अब यह बेचारे कहते हैं कि या तो मेरा इस्तीफा लीजिए, या गोदाम की रक्षा के लिए चौंकीदारों का प्रबंध कीजिए। स्त्रियां इतनी भयभीत हो गई हैं कि वहां एक क्षण भी नहीं रहना चाहतीं। यह सारा उपद्रव उसी अंधे की बदौलत हो रहा है।

महेंद्रकुमार–मुझे तो वह बहुत गरीब, सीधा-सा आदमी मालूम होता है; मगर है छंटा हुआ। उसी की दीनता पर तरस खाकर मैंने निश्चय किया था कि आपके लिए कोई दूसरी जमीन तलाश करूं। लेकिन जब उन लोगों ने शरारत पर कमर बांधी है और आपको जबरदस्ती वहां से हटाना चाहते हैं, तो इसका उन्हें अवश्य दंड मिलेगा।

जॉन सेवक–बस, यही बात है, वे लोग मुझे वहां से निकाल देना चाहते हैं। अगर रिआयत की गई, तो मेरे गोदाम में जरूर आग लग जाएगी।

महेंद्रकुमार–मैं खूब समझ रहा हूं। यों मैं स्वयं जनवादी हूं और उस नीति का हृदय से समर्थन करता हूं; पर जनवाद के नाम पर देश में जो अशांति फैली हुई है, उसका मैं घोर विरोधी हूं। ऐसे जनवाद से तो धनवाद, एकवाद, सभी वाद अच्छे हैं। आप निश्चिंत रहिए।

इसी भांति कुछ देर और बातें करके राजा साहब को खूब भरकर जॉन सेवक विदा हुए। रास्ते में ताहिर अली सोचने लगे–साहब को मेरी दुर्गति से अपना स्वार्थ सिद्ध करने में जरा भी संकोच नहीं हुआ। क्या ऐसे धनी-मानी, विशिष्ट, विचारशील विद्वान प्राणी भी इतने स्वार्थ-भक्त होते हैं !

जॉन सेवक अनुमान से उनके मन के भाव ताड़ गए। बोले–आप सोच रहे होंगे, मैंने बातों को इतना रंग क्यों भरा, केवल घटना का यथार्थ वृत्तांत क्यों न कह सुनाया; किंतु सोचिए, बिना रंग भरे मुझे यह फल प्राप्त हो सकता? संसार में किसी काम का अच्छा या बुरा होना उसकी सफलता पर निर्भर है। एक व्यक्ति राजसत्ता का विरोध करता है। यदि अधिकारियों ने उसका दमन कर दिया, तो वह राजद्रोही कहा जाता है, और प्राणदंड पाता है। यदि उसका उद्देश्य पूरा हो गया, तो वह अपनी जाति का उद्धारकर्ता और विजयी समझा जाता है, उसके स्मारक बनाए जाते हैं। सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है। आप जानते हैं, दो साल पहले मुस्तफा कमाल क्या था? बागी, देश उसके खून का प्यासा था। आज वह अपनी जाति का प्राण है। क्यों? इसलिए कि सफल-मनोरथ हुआ। लेकिन कई साल पहले प्राणभय से अमेरिका भागा था, आज वह प्रधान है। इसलिए कि उसका विद्रोह सफल हुआ। मैंने राजा साहब को स्वपक्षी बना लिया, फिर रंग भरने को दोष कहां रहा?

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