सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
फिटन उड़ी जाती थी और उसके साथ ताहिर अली के होश भी उड़े जाते थे–मैं समझता था, इन हजरत में ज्यादा इंसानियत होगी; पर देखता हूं तो यह अपने बाप से भी दो अंगुल ऊंचे हैं। न हारी मानते हैं, न जीती। ये ताने बर्दाश्त नहीं हो सकते। कुछ मुफ्त में तनख्वाह नहीं देते। काम करता हूं, मजदूरी लेता हूं। तानों-ही-तानों में मुझे कमीना, अहमक, जाहिल, सब कुछ बना डाला। अभी उम्र में मुझसे कितने छोटे हैं ! माहिर से दो-चार साल बड़े होंगे; मगर मुझे इस तरह आड़े हाथों ले रहे हैं, गोया मैं नादान बच्चा हूं ! दौलत ज्यादा होने से अक्ल भी ज्यादा हो जाती है। चैन से जिंदगी बसर होती है, जभी ये बातें सूझ रही हैं। रोटियों के लिए ठोकरें खानी पड़तीं, तो मालूम होता, तजुर्बा क्या चीज है। आप कोई बात एतराज के लायक देखें, तो उसे समझाने का हक है, इसकी मुझे शिकायत नहीं; पर जो कुछ कहो, नरमी और हमदर्दी के साथ। यह नहीं की जहर उगलने लगो, कलेजे को चलनी बना डालो।
ये बातें हो रही थीं कि पांडेपुर आ पहुंचा। सूरदास आज बहुत प्रसन्नचित्त नजर आता था। और दिन सवारियों के निकल जाने के बाद दौड़ता था। आज आगे ही उनका स्वागत किया, फिटन देखते ही दौड़ा। प्रभु सेवक ने फिटन रोक दी और कर्कश स्वर में बोले–क्यों सूरदास, मांगते हो भीख, बनते हो साधु और काम करते हो बदमाशों का? मुझसे फौजदारी करने का हौसला हुआ है?
सूरदास–कैसी फौजदारी हुजूर? मैं अंधा-अपाहिज आदमी, भला क्या फौजदारी करूंगा।
प्रभु सेवक–तुम्हीं ने तो मुहल्लेवालों को साथ लेकर मेरे मुंशीजी पर हमला किया था और गोदाम में आग लगाने को तैयार थे?
सूरदास–सरकार, भगवान से कहता हूं मैं नहीं था। आपलोगों का मांगता हूं, जान-माल का कल्यान मनाता हूं, मैं क्या फौजदारी करूंगा?
प्रभु सेवक–क्यों मुंशीजी, यही अगुआ था न?
ताहिर–नहीं हुजूर, इशारा इसी का था, पर यह वहां न था।
प्रभु सेवक–मैं इन चालों को खूब समझता हूं। तुम जानते होगे, इन धमकियों से ये लोग डर जाएंगे, मगर एक-एक से चक्की न पिसवाई, तो कहना कि कोई कहता था। साहब को तुमने क्या समझा है ! अगर हाकिमों से झूठ भी कह दें, तो सारा मुहल्ला बंध जाए। मैं तुम्हें जताए देता हूं।
फिटन आगे बढ़ी, तो जगधर मिला। खोंची हथेली पर रखे, एक हाथ से मक्खियां उड़ाता चला जाता था। प्रभु सेवक को देखते ही सलाम करके खड़ा हो गया। प्रभु सेवक ने पूछा–तुम भी कल फौजदारी करनेवालों में थे?
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