सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
बजरंगी दूसरे दिन आने का वादा करके खुश-खुश चला गया, तो जैनब ने रकिया से कहा–तुम बेसब्र हो जाती हो। अभी चमारों से दो पैसे खाल लेने पर तैयार हो गईं। मैं दो आने लेती, और वे खुशी से देते। यही अहीर पूरे सौ गिनकर जाता। बेसब्री से गरजमंद चौकन्ना हो जाता है। समझता है, शायद हमें बेवकूफ बना रही हैं जितनी ही देर लगाओ, जितनी बेरुखी से काम लो, उतना एतबार बढ़ता है।
रकिया–क्या करूं, बहन, मैं डरती हूं, कि कहीं बहुत सख्ती से निशाना खता न कर जाए।
जैनब–वह अहीर रुपए जरूर लाएगा। ताहिर को आज ही से भरना शुरू कर दो। बस, अजाब का खौफ दिलाना चाहिए। उन्हें हत्थे चढ़ाने का यही ढंग है।
रकिया–और कहीं साहब न माने, तो?
जैनब–तो कौन हमारे ऊपर नालिश करने जाता है।
ताहिर अली खाना खाकर लेटे थे कि जैनब ने जाकर ने कहा–साहब दूसरों की जमीन क्यों लिए लेते हैं? बेचारे रोते फिरते हैं।
ताहिर–मुफ्त थोड़े ही लेना चाहते हैं ! उसका माकूल मुआवजा देने पर तैयार हैं।
जैनब–यह तो गरीबों पर जुल्म है।
रकिया–जुल्म ही नहीं है, अजाब है। भैया, तुम साहब से साफ-साफ कह दो, मुझे इस अजाब में न डालिए। खुदा ने मेरे आगे भी बाल-बच्चे दिए हैं, न जाने कैसी पड़े, कैसी न पड़े; मैं यह अजाब सिर पर न लूंगी।
जैनब–गंवार तो है ही, तुम्हारे ही सिर हो जाएं। तुम्हें साफ कह देना चाहिए कि मैं मुहल्लेवालों से दुश्मनी मोल न लूंगा, जान-जोखिम की बात है।
रकिया–जान-जोखिम तो है ही, ये गंवार किसी के नहीं होते।
ताहिर–क्या आपने भी कुछ अफवाह सुनी है?
रकिया–हां, ये सब चमार आपस में बातें करते जा रहे थे कि साहब ने जमीन ली, तो खून की नदी बह जाएगी। मैंने तो जब से सुना है, होश उड़े जा रहे हैं।
जैनब–होश उड़ने की बात ही है।
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