सदाबहार >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
ज्योतिषी– ‘‘न जाऊँगा तो मुहूर्त की खबर कैसे होगी?’’
भारीली– क्या इस शहर में आप और भी कहीं मुहूर्त बताते और शादियां करवाते हैं?’’
ज्योतिषी– ‘‘सारे शहर में मेरे सिवा और है ही कौन। राजा प्रजा सब मुझी को बुलाते हैं।’’
भारीली– ‘‘ज्योतिषी जी, नाराज न होना, जिन लड़कियों की शादियां आप करवाते हैं वह कितनी देर तक सुहागिन रहती हैं?’’
ज्योतिषी– (चौंककर) ‘‘हैं, यह तूने क्या कहा? क्या मुझ से दिल्लगी करती है?’’
भारीली– ‘‘नहीं ज्योतिषी जी, दिल्लगी तो नहीं करती, सचमुच कहती हूं।’’
ज्योतिषी– ‘‘इन बातों का जवाब मेरे पास नहीं। तेरा मतलब जो कुछ हो साफ-साफ कह।’’
भारीली– ‘‘कुछ नहीं, आप अपने मुहूर्त को एक बार और जांच लीजिए।’
ज्योतिषी– ‘‘कुछ कहेगी भी?’’
भारीली– ‘‘आप अपनी साइत फिर से देख लीजिए तो कहूं।’’
ज्योतिषी– ‘‘चल दूर हो, बूढ़ों से खेल नहीं करते।’’
यह कहकर ज्योतिषी जी अन्दर चले गए, मगर फिर सोच-विचारकर पट्टी निकाली, साइत को खूब अच्छी तरह जांचा और उंगलियों पर गिन-गिनकर बोले, मुहूर्त में कोई दोष नहीं है।
भारीली– (उदास स्वर में) ‘‘तो फिर किस्मत की फूटी होगी।’’
ज्योतिषी– (भौचक होकर) ‘‘नहीं मैंने जन्मपत्री देखकर मुहूर्त निकाला था।’’
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