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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610
आईएसबीएन :978-1-61301-181

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है


झाली रानी– ‘‘भट्टानी यहां हरगिज न आने पाए।’’

आसा जी– ‘‘बहुत अच्छा, ऐसा ही होगा। न आने पाएंगी।’’

झाली रानी– ‘‘न कैसे आएंगी, वह तो चल दी हैं। कल-परसों तक आ पहुंचेंगी।’’

आसा जी– ‘‘आप खातिर जमा रखिए, मैं उसे रास्ते में रोक लूंगा।’’

रानियों ने धन-दौलत से आसा जी को मालामाल कर दिया और कहा, अगर आप हमारा काम कर देंगे तो हीरे-जवाहरात से आपका घर भर दिया जाएगा।

आसा जी ने राव जी से यह बहाना किया कि एक जरूरी काम से घर जा रहा हूं और इजाजत पाते ही अजमेर की तरफ चला। जब जोधपुर से पन्द्रह कोस पूरब को साना गांव के करीब पहुंचा तो उसे दूर से निशान का हाथी दिखाई दिया और नक्कारे की आवाज कान में आई। समझ गया कि रूठी रानी की आवाज कान में आ रही है।

सवारी का दूर तक तांता लगा था। हाथी के पीछे ऊंटों का नौबतखाना था। उसके पीछे घोड़ों का नक्कारा बज रहा था। जरा और पीछे सजे हुए ऊंट और फिर चीलों (जोधपुर के निशान या झण्डे में चील की तस्वीर बनी होती है। यह राठौरों का कौमी निशान है।) का झुंड हवा में लहराता दिखाई दिया। झंडे के पीछे लड़ैत बहादुर राठौरों का एक रिसाला था, फिर एक बन्दूकचियों की कतार, उनके पीछे तीरंदाज और उसके बाद ढाल-तलवार वाले राजपूत थे। जरा और पीछे हट कर कोतल हाथी और घोड़े सोने-चांदी में डूबे हुए जर्दी और जर्बफ्त के सामान से लैस धीमे-धीमे चलते थे। उसके बाद नकीब और चोबदार सोने-चांदी के डंडे लिए रास्ता साफ करते चलते थे। चारण ईश्वरदास जी भी पांचों हथियार लगाए, उदंची बने, एक धीमे-धीमे चलने वाले घोड़े पर अकड़े बैठे थे। ज्योंही उनकी नजर अपने चाचा आसा जी पर पड़ी, घोड़े से उतरकर मुजरा किया और पूछा– ‘‘आप यहां कहां?’’ आसा जी बोले– ‘‘बाई जी की अगवानी करने आया हूं।’’ दोनों वहीं खड़े होकर बातें करने लगे। जुलूस बढ़ता चला गया।

नकीबों के पीछे एक जमात सशस्त्र स्त्रियों की आई जो तीर-कमान और खंजर लगाए हुए थीं उन्हीं के झुरमुट में रानी उमादे का सुनहरा सुखपाल था। उस पर जरी का गहरा गुलाबी पर्दा पड़ा था। जगह-जगह अनमोल जवाहरात और नगीने जड़े हुए थे जिन पर निगाह नहीं ठहरती थी। कहात अतलस और कमखाब के लिबास पहने हुए थे। इस सजे हुए सुखपाल के पीछे नंगी तलवारों का पहरा था फिर कई जनानी सवारियां पालकियों, पीनसों और रथों में थी। उसके बाद राठौरों का एक रिसाला और रिसाले के पीछे जुलूस के बाकी कोतल हाथी-घोड़े और ऊंट थे। सबसे पीछे फराशखाना, तोखाखाना, रसदखाना और फौज की दूसरी जरूरी चीजों की गाड़ियां थीं।

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