सदाबहार >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
इतने में खवास खां को खबर मिली के राठौर कोसाने में जमा हो रहे हैं। वह फौरन वहां पहुंचा और रूठी रानी को कहलाया कि या तो हमसे लड़ो या जगह खाली कर दो। रानी ने जवाब दिया कि मैं लड़ने को तैयार हूं, तेरा जब भी जी चाहे आ जा। मैं औरत हूं तो क्या मगर राजपूत की बेटी हूं।
खवास खां ने अपने सरदारों से सलाह ली कि अब क्या करना चाहिए।
उन्होंने कहा– ‘अभी थोड़े से राजपूतों ने बादशाह से लड़कर आफत मचा दी थी।
उसके साथ राजा भी न था। अगर वह होता तो नहीं मालूम क्या गजब हो जाता। अब फिर उन्हीं से खामखाह झगड़ा मोल लेने की क्या जरूरत है? यह ठीक है कि राजा यहां नहीं है, मगर रानी तो है। उसके सरदार अपनी रानी की इज्जत बचाने के लिए जी तोड़कर लड़ेंगे, और रानी खुद भी दबने वाली नहीं नजर आती।’’ खवास खां ने कहा– ‘‘यह तो ठीक है मगर यहां से बिना लड़े जाऊंगा तो लोग कहेंगे कि मर्द होकर औरत के सामने से भाग गया।’’ सरदारों ने जवाब दिया कि औरत से न लड़ने में इतनी जिल्लत नहीं जितनी उससे हार जाने में आखिरकार यह फैसला हुआ कि इस मामले में बादशाह की राय की गुजारिश की जाए।
बादशाह उस वक्त अजमेर में था और राणा उदयसिंह पर चढ़ाई करने की फिक्र में था। खवास खां की अर्जी पहुंचते ही उसने जवाब दिया कि अब इन भिडों के छत्ते को न छेड़ो। जो मुल्क कब्जे में आ गया है उसी को गनीमत समझो। हां, अगर वह खुद लड़ने आए तो मैदान से न हटो। हां, उसके पास कहला भेजा कि जहां मेरा लश्कर पड़ा है, हुक्म हो तो वहां एक गांव बसाकर चला जाऊं ताकि आपके मुल्क पर मेरा भी कुछ निशान रह जाए।
रानी ने फरमाया– ‘‘नाम नेकी से रहता है, गांव बसाने से नहीं। इस वक्त तू जोधपुर का हाकिम है, अगर तू रियाया के साथ बर्ताव करेगा, उसे आराम-चैन में रखेगा तो आप तेरी यादगार बना देंगे।’’
खवास खां ने गुजारिश की– ‘‘खुदा आपकी जबान मुबारक करें। मैं जो अपने हाथ से कर जाऊं वही अच्छा है, फिर नहीं मालूम, यहां मेरा रहना हो या न हो।’’
रानी ने अपने सरदारों से मशविरा किया। उन्होंने कहा– ‘‘क्या नुकसान है अपने देश में एक और गांव बढ़ जाएगा।’’ चुनांचे रानी ने खवास खां की दरख्वास्त मंजूर कर ली और वह नेक मर्द खवासपुर संवत् १६०० में वहां से चल दिया।
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