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नाटक-एकाँकी >> संग्राम (नाटक)

संग्राम (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8620
आईएसबीएन :978-1-61301-124

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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट


फत्तू– ठीक तो कहती हैं। क्या सरकार के जोरू-बच्चे नहीं है। इतनी बड़ी फौज बिना रुपये के ही रखी है! एक-एक तोप लाखों में आती है। हवाई जहाज कई-कई लाख के होते हैं। सिपाहियों को कूच के लिए हवा-गाड़ी चाहिए। जो खाना यहाँ रईसों को मयस्सर नहीं होता वह सिपाहियों को खिलाया जाता है। साल में छह महीने सब बड़े-बड़े हाकिम पहाड़ों की सैर करते हैं। देखते तो हो छोटे-छोटे हाकिम भी बादशाहों की तरह ठाट से रहते हैं, अकेली जान पर दस-पंद्रह नौकर रखते हैं, एक पूरा बंगला रहने को चाहिए जितना बड़ा हमारा गाँव है उससे ज्यादा जमीन एक बंगले के हाते में होती है। सुनते हैं १० रु. २० रु. बोतल की शराब पीते हैं। हमको तुमको पेट भर रोटियाँ नहीं नसीब होती, वहाँ रात-दिन रंग चढ़ा रहता है। हम तुम रेलगाड़ी में धक्के खाते हैं। एक-एक डब्बे में जहाँ दस की जगह है वहाँ बीस-पचीस, तीस, चालीस ठूंस दिये जाते हैं। हाकिमों के वास्ते सभी सजी-सजायी गाड़ियाँ रहती हैं, आराम से गद्दी पर लेटे हुए चले जाते हैं। रेलगाड़ी को जितना हम किसानों से मिलता है उसका एक हिस्सा भी उन लोगों से मिलता होगा। मगर तिस पर भी हमारी कहीं पूछ नहीं। जमाने की खूबी है!

हलधर– सुना है मेमें अपने बच्चों को दूध नहीं पिलाती।

फत्तू– सो ठीक है दूध पिलाने से औरत का शरीर ढीला हो जाता है, वह फुरती नहीं रहती दाइयाँ रख लेते हैं। वही बच्चों को पालती-पोसती है। माँ खाली देख-भाल करती रहती है। लूट है लूट!

सलोनी– दरखास दो; मेरा मन कहता है, छूट हो जायेगी।

फत्तू– कह तो दिया, दो-चार आने की छूट हुई भी तो बरसों लग जायेंगे पहले पटवारी कागद बनायेगा, उसको पूजो; तब कानूगो जाँच करेगा, उसको पूजो; वहां से तब बड़े साहब इजलास में जायेगा वहाँ अहलमद और अरदली और नासिर सभी को पूजना पड़ेगा। बड़े साहब कमसनर को रपोट देंगे, वहाँ भी कुछ-न-कुछ पूजा करनी पड़ेगी। इस तरह मंजूरी होते-होते एक जुग बीत जायेगा। इन सब झंझटों से तो यही अच्छा कि–

रहिमन चुप है बैठिये देखि दिननको फेर।

जब नीके दिन आइहैं बनत न लगि है बेर।।

हलधर– मुझे तो ६० रु. लगान देने हैं। बैल-बधिया बिक जायेंगे तब भी पूरा न पड़ेगा।

एक किसान– बचेंगे किसके। अभी साल-भर खाने को चाहिए। देखो गेहूँ के दाने कैसे बिखरे पड़े हैं जैसे किसी ने मसल दिये हों।

हलधर– क्या करना होगा?

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