कहानी संग्रह >> सप्त सरोज (कहानी संग्रह) सप्त सरोज (कहानी संग्रह)प्रेमचन्द
|
7 पाठकों को प्रिय 430 पाठक हैं |
मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध कहानियाँ
बुढ़िया न जाने कब तक जियेगी। दो-तीन बीघे ऊसर क्या दे दिया, मानो मोल ले लिया है। बघारी दाल के बिना रोटियाँ नहीं उतरतीं! जितना रुपया इसके पेट में झोंक चुके, उतने से तो अब तक गाँव मोल ले लेते।
कुछ दिन खालाजान ने सुना और सहा; पर जब न सहा गया तब जुम्मन से शिकायत की। जुम्मन ने स्थानीय कर्मचारी गृहस्वामिनी के प्रबंध दखल देना उचित न समझा। कुछ दिन तक और यों ही रो-धोकर काम चलता रहा। अन्त में एक दिन खाला ने जुम्मन से कहा– बेटा! तुम्हारे साथ मेरा निर्वाह न होगा। तुम मुझे रुपये दे दिया करो, मैं अपना अलग पका-खा लूँगी।
जुम्मन ने धृष्टता के साथ उत्तर दिया– रुपये क्या यहाँ फलते हैं? खाला ने नम्रता से कहा– मुझे कुछ रूखा-सूखा चाहिए भी कि नहीं? जुम्मन ने गम्भीर स्वर से जवाब दिया– तो कोई यह थोड़े ही समझा था कि मौत से लड़कर आयी हो? खाला बिगड़ गयीं, उन्होंने पंचायत करने की धमकी दी। जुम्मन हँसे, जिस तरह कोई शिकारी हिरन को जाली की तरफ जाते देख कर मन ही मन हँसता है। वे बोले– हाँ, जरूर पंचायत करो। फैसला हो जाय। मुझे भी यह रात-दिन की खटखट पसंद नहीं।
पंचायत में किसकी जीत होगी, इस विषय में जुम्मन को कुछ भी सन्देह न थ। आस-पास के गाँवों में ऐसा कौन था, जो इनके अनुग्रह का ऋणी न हो? ऐसा कौन था, जो उनको शत्रु बनाने का साहस कर सके? किसमें इतना बल था, जो उनका सामना कर सके? आसमान से फरिश्ते तो पंचायत करने आवेंगे नहीं।
इसके बाद कई दिन तक बूढ़ी खाला हाथ में एक लकड़ी लिये आस-पास के गाँवों में दौड़ती रही। कमर झुक कर कमान हो गयी थी। एक-एक पग चलना दूभर था; मगर बात आ पड़ी थी। उसका निर्णय करना जरूरी था।
|