कहानी संग्रह >> सप्त सरोज (कहानी संग्रह) सप्त सरोज (कहानी संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध कहानियाँ
इस उपदेश के बाद पिताजी ने आशीर्वाद दिया। वंशीधर आज्ञाकारी पुत्र थे। ये बातें ध्यान से सुनीं और घर से चल खड़े हुए। इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि अपनी पथदर्शक और आत्मावलम्बन ही अपना सहायक था। लेकिन अच्छे शकुन से चले थे, जाते ही नमक-विभाग के दारोगा-पद पर प्रतिष्ठित हो गए। वेतन अच्छा और ऊपरी आय का तो ठिकाना ही न था। वृद्ध मुन्शीजी को शुभ संवाद मिला तो फूले न समाए। महाजन लोग कुछ नरम पड़े, कलवार की आशा-लता लहराई। पड़ोसियों के हृदय में शूल उठने लगे।
जाड़े के दिन थे और रात का समय। नमक के सिपाही, चौकीदार नशे में मस्त थे। मुन्शी वंशीधर को यहाँ आये अभी छ: महीनों से अधिक न हुए थे, लेकिन इस थोड़े से समय में उन्होंने अपनी कार्य-कुशलता और उत्तम आचार से अफसरों को मोहित कर लिया था। अफसर लोग उन पर बहुत विश्वास करने लगे। नमक के दफ्तर से एक मील पूर्व की ओर जमुना बहती थी, उस पर नावों का एक पुल बना हुआ था। दारोगाजी किवाड़ बन्द किए मीठी नींद सोते थे।अचानक आँख खुली तो नदी प्रवाह की जगह गाड़ियों की गड़गड़ाहट तथा मल्लाहों का कोलाहल सुनाई दिया, उठ बैठे। इतनी रात गये गाड़ियाँ क्यों नदी के पार जाती हैं? अवश्य कुछ न कुछ गोलमाल है। तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया। वरदी पहनी, तमंचा जेब में रखा और बात की बात में घोड़ा बढ़ाए हुए पुल पर आ पहुँचे। गाड़ियों की एक लम्बी कतार पुल से पार जाते देखी। डाँटकर पूछा– किसकी गाड़ियाँ हैं?
थोड़ी देर तक सन्नाटा रहा। आदमियों में कानाफूसी हुई, तब आगेवाले ने कहा– पण्डित अलोपीदीन की।
‘‘कौन पण्डित आलोपीदीन?’’
‘‘दातागंज के।’’
मुन्शी वंशीधर चौंके। पण्डित अलोपीदीन इस इलाके के सबसे प्रतिष्ठित जमींदार थे। लाखों रुपया का लेन-देन करते थे, इधर छोटे से बड़े कौन ऐसे थे, जो उनके ऋणी न हों। व्यापार भी बड़ा लंबा चौड़ा था। बड़े चलते-पुरजे आदमी थे। अँगरेज अफसर उनके इलाके में शिकार खेलने आते और उनके मेहमान होते। बारहों मास सदाव्रत चलता था।
मुन्शीजी ने पूछा, गाड़ियाँ कहाँ जायँगी। उत्तर मिला, कानपुर। लेकिन इस प्रश्न पर कि इनमें है क्या, फिर सन्नाटा छा गया। दारोगा साहब का संदेह और भी बढ़ा। कुछ देर तक उत्तर की बाट देखकर वह जोर से बोले– क्या तुम सब गूँगे हो? हम पूछतें हैं, इनमें क्या लदा है?
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