कहानी संग्रह >> सप्त सरोज (कहानी संग्रह) सप्त सरोज (कहानी संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध कहानियाँ
सरदार सुजानसिंह ने इन महानुभावों के आदर-सत्कार का बड़ा अच्छा प्रबन्ध कर दिया था। लोग अपने-अपने कमरों में बैठे हुए रोजेदार मुसलमानों की तरह महीने के दिन गिना करते थे। हर एक मनुष्य अपने जीवन को अपनी बुद्धि के अनुसार अच्छे रूप में दिखाने की कोशिश करता था। मिस्टर ‘‘अ’’ नौ बजे दिन तक सोया करते थे। आजकल वे बगीचे में टहलते हुए उषा का दर्शन करते थे। मिस्टर ‘‘ब’’ को हुक्का पीने की लत थी, पर आजकल बहुत रात गए किवाड़ बन्द करके अँधेरे में सिगार पीते थे। मिस्टर ‘‘द’’, ‘‘स’’ और ‘‘ज’’ से उनके घरों पर नौकरों के नाक में दम था, लेकिन ये सज्जन आजकल ‘‘आप’’ और ‘‘जनाब’’ के बगैर नौकरों से बातचीत नहीं करते थे।
महाशय ‘‘क’’ नास्तिक थे, हक्सले के उपासक। मगर आजकल उनकी धर्मनिष्ठा देखकर मन्दिर के पुजारी को पदच्युत हो जाने की शंका लगी रहती थी। मिस्टर ‘‘ल’’ को किताबों से घृणा थी, परन्तु आजकल वे बड़े-बड़े ग्रन्थ लिखने-पढ़ने में डूबे रहते थे। जिससे बात कीजिए वह नम्रता और सदाचार का देवता बना मालूम देता था। शर्माजी घड़ी रात से ही वेद-मन्त्र पढ़ने लगते थे और मौलवी साहब को तो नमाज और तलाबत के सिवा और कोई काम न था। लोग समझते कि एक महीने का झंझट है, किसी तरह काट लें, कहीं कार्य सिद्ध हो गया तो कौन पूछता है।
लेकिन मनुष्यों का बूढ़ा जौहरी आड़ में बैठा हुआ देख रहा था कि इन बगुलों में हंस कहाँ छिपा हुआ है।
एक दिन नए फैशनवालों को सूझी कि आपस में हाकी का खेल हो जाए। यह प्रस्ताव हाकी के मँजे हुए खिलाड़ियों ने पेश किया। यह भी तो आखिर एक विद्या है। इसे क्यों छिपा रखें। सम्भव है, कुछ हाथों की सफाई ही काम कर जाए। चलिए, तय हो गया, कोर्ट बन गए, खेल शुरू हो गया और गेंद किसी दफ्तर के अप्रेण्टिस की तरह ठोकर खाने लगा।
रियासत देवगढ़ में यह खेल बिलकुल निराली बात थी। पढ़े-लिखे भलेमानुस लोग शतरंज और ताश जैसे गम्भीर खेल खेलते थे। दौड़ कूद के खेल बच्चों के खेल समझे जाते थे।
खेल बड़े उत्साह से जारी था। धावे के लोग जब गेंद को लेकर तेजी से उड़ते, तो ऐसा जान पड़ता था कि लहर बढ़ती चली आती है। लेकिन दूसरी ओर के खिलाड़ी इस बढ़ती हुई लहर को इस तरह रोक लेते थे कि मानो लोहे की दीवार है।
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