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सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626
आईएसबीएन :978-1-61301-184

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


बुलाकी– गालियाँ दोगे, तो मैं भी कुछ कह बैठूँगी। सुनती थी, मर्द बड़े समझदार होते हैं, पर तुम सबसे न्यारे हो। आदमी को चाहिए कि जैसा समय देखे वैसा काम करे। अब हमारा और तुम्हारा निबाह इसी में है। कि नाम के मालिक बने रहे और वही करे जो लड़कों की इच्छा लगे। मैं यह बात समझ गई, तुम क्यों नहीं समझ पाते? जो कमाता है, उसी का घर में राज होता है, यही दुनिया का दस्तूर है। मैं बिना लड़कों से पूछे कोई काम नहीं करती, तुम क्यों अपने मन की करते हो? इतने दिनों तो राज कर लिया, अब क्यों इस माया में पड़े हो? आधी रोटी खाओ भगवान का भजन करो और पड़े रहो। चलो, खाना खा लो।

सुजान– तो अब मैं द्वार का कुत्ता हूँ?

बुलाकी– बात जो थी मैंने कह दी अब अपने को चाहें जो समझो।

सुजान न उठे। बुलाकी हारकर चली गई।

सुजान के सामने अब एक नई समस्या खड़ी हो गई थी। वह बहुत दिनों घर का स्वामी था। और अब भी ऐसा ही समझता था। परिस्थिति में कितना उलट फेर हो गया था। इसकी उसे खबर न थी। लड़के सेवा– सम्मान करते हैं, यह बात भ्रम में डाले हुए थी। लड़के उसके सामने चिलम नहीं पीते, खाट पर नहीं बैठते, क्या यह सब उसके गृहस्वामी होने का प्रमाण न था? पर आज उसे ज्ञात हुआ कि यह केवल श्रद्धा थी, उसके स्वामित्व का प्रमाण नहीं। क्या इस श्रद्धा के बदले वह अपना अधिकार छोड़ सकता था? कदापि नहीं। अब तक जिस घर में राज्य किया, उसी घर में पराधीन बनकर वह नहीं रह सकता। उसको श्रद्धा की चाह नहीं, सेवा की भीख नहीं उसे अधिकार चाहिए। वह इस घर पर दूसरों का अधिकार नहीं देख सकता। मंदिर का पुजारी बनकर वह नहीं रह सकता।

न जाने कितनी रात बाकी थी। सुजान उठकर गँड़ासे से बैलों का चारा काटना शुरू किया। सारा गाँव सोता था, पर सुजान करबी काट रहे थे। इतना श्रम उन्होंने अपने जीवन में कभी न किया था। जब से उन्होंने काम करना छोड़ा था, बराबर चारे के लिए हाय– हाय पड़ी रहती थी। शंकर भी काटता था, भोला भी काटता था, पर चारा पूरा न पड़ता था। आज वह इन लौंड़ों को दिखा देंगे, चारा कैसे काटना चाहिए। उनके सामने कटिया का पहाड़ खड़ा हो गया और टुकड़े कितने महीने और सुडौल थे, मानो साँचे में ढाले गए हों!

मुँह–अँधेरे बुलाकी उठी, तो कटिया का ढेर देखकर दंग रह गई। बोली– क्या भोला आज रात भर कटिया ही काटता रह गया? कितना कहा कि बेटा जी से जहान है पर मानता ही नहीं। रात को सोया ही नहीं।

सुजान भगत ने ताने से कहा– वह सोता ही कब है? जब देखता हूँ, काम ही करता है। ऐसा कमाऊ संसार में और कौन होगा?

इतने में भोला आँखें मलता हुआ बोला– क्या शंकर आज बड़ी रात को ही उठा था, अम्माँ?

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