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सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626
आईएसबीएन :978-1-61301-184

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


उसी समय जियावन की आँखे खुल गयीं। उसने पानी माँगा। माता ने दौड़ कर कटोरे में पानी लिया और बच्चे को पिला दिया।

जियावन ने पानी पीकर कहा– अम्मा रात है कि दिन? सुखिया– अभी तो रात है बेटा, तुम्हारा जी कैसा है?

जियावन– अच्छा है अम्माँ! अब मैं अच्छा हो गया।

सुखिया– तुम्हारे मुँह में घी– शक्कर, बेटा, भगवान् करे तुम जल्द अच्छे हो जाओ। कुछ खाने को जी चाहता है?

जियावन– हाँ अम्माँ थोड़ा– सा गुड़ दे दो।

सुखिया– गुड़ मत खाओ भैया, अवगुन करेगा। कहो तो खिचड़ी बना दूँ।

जियावन– नहीं मेरी अम्माँ, जरा सा गुड़ दे दो, तेरे पैरों पड़ूँ।

माता इस आग्रह को न टाल सकी। उसने थोड़ा– सा गुड़ निकाल कर जियावन के हाथ में रख दिया और हाँड़ी का ढक्कन लगाने जा रही थी कि किसी ने बाहर से आवाज दी। हाँड़ी वहीं छोड़ कर वह किवाड़ खोलने चली गयी। जियावन ने गुड़ की दो पिंडियाँ निकाल लीं और जल्दी– जल्दी चट कर गया।

दिन भर जियावन की तबीयत अच्छी रही। उसने थोड़ी सी खिचड़ी खायी, दो– एक बार धीरे– धीरे द्वार पर भी आया और हमजोलियों के साथ खेल न सकने पर भी उन्हें खेलते देखकर उसका जी बहल गया। सुखिया ने समझा, बच्चा अच्छा हो गया। दो– एक दिन में जब पैसे हाथ में आ जायेंगे, तो वह एक दिन ठाकुर जी की पूजा करने चली जाएगी। जाड़े के दिन झाड़ू– बहारू, नहाने– धोने और खाने– पीने में कट गये; मगर जब संध्या के समय फिर जियावन का जी भारी हो गया, तब सुखिया घबरा उठी। परंतु मन में शंका उत्पन्न हुई कि पूजा में विलम्ब करने से ही बालक फिर मुरझा गया है। अभी

थोड़ा– सा दिन बाकी था। बच्चे को लेटा कर वह पूजा का सामान तैयार करने लगी। फूल तो जमींदार के बगीचे में मिल गये। तुलसीदल द्वार पर था, पर ठाकुर जी के भोग के लिए कुछ मिष्ठान तो चाहिए। सारा गाँव छान आई कहीं पैसे उधार न मिले। अब वह हतास हो गयी। हाय रे अदिन! कोई चार आने पैसे भी नहीं देता। आखिर उसने अपने हाथों के चाँदी के कड़े उतारे और दौड़ी हुई बनिये कि दुकान पर गयी, कड़े गिरों रखे,

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