उपन्यास >> सेवासदन (उपन्यास) सेवासदन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है
सुमन– नहीं, अब से मुझे क्षमा कीजिएगा।
सदन– खैर देखा जाएगा।
सुमन– आपकी खातिर से मैं इस तोहफे को रख लेती हूं। लेकिन इसे थाती समझती रहूंगी। आप अभी स्वतंत्र नहीं हैं। जब आप अपनी रियासत के मालिक हो जाएं, तब मैं आपसे मनमाना कर वसूल करूंगी। लेकिन अभी नहीं।
१८
बाबू विट्ठलदास अधूरा काम न करते थे। पद्मसिंह की ओर से निराश होकर उन्हें यह चिंता होने लगी कि सुमनबाई के लिए पचास रुपए मासिक का चंदा कैसे करूं? उनकी स्थापित की हुई संस्थाएं चंदों ही से चल रही थीं, लेकिन चंदों के वसूल होने में सदैव कठिनाइयों का सामना होता था। विधवाश्रम की इमारत बनाने में हाथ लगाया, लेकिन दो साल से उसकी दीवारें गिरती जाती थीं। उन पर छप्पर डालने के लिए रुपए हाथ न आते थे। फ्री लाइब्रेरी की पुस्तकें दीमकों का आहार बनती जाती थीं। आलमारियां बनाने के लिए द्रव्य का अभाव था, लेकिन इन बाधाओं के होते हुए भी चंदे के सिवा धन संग्रह का उन्हें और कोई उपाय न सूझा। सेठ बलभद्रदास शहर के प्रधान नेता, आनरेरी मजिस्ट्रेट और म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन थे। पहले उनकी सेवा में उपस्थित हुए। सेठजी अपने बंगले में आरामकुर्सी पर लेटे हुए हुक्का पी रहे थे। बहुत ही दुबले-पतले, गोरे-चिट्ठे आदमी थे, बड़े रसिक, बड़े शौकीन। वह प्रत्येक काम में बहुत सोच-समझकर हाथ डालते थे। विट्ठलदास का प्रस्ताव सुनकर बोले– प्रस्ताव तो बहुत उत्तम है, लेकिन यह बताइए, सुमन को आप रखना कहां चाहते हैं?
विट्ठलदास– विधवाश्रम में।
बलभद्र– आश्रम सारे नगर में बदनाम हो जाएगा और संभव है कि अन्य विधवाएं भी छोड़ भागें।
विट्ठलदास– तो अलग मकान लेकर रख दूंगा।
बलभद्र– मुहल्ले के नवयुवकों में छुरी चल जाएगी।
विट्ठलदास– तो फिर आप ही कोई उपाय बताइए।
बलभद्र– मेरी सम्पत्ति तो यह है कि आप इस झगड़े में न पड़े, जिस स्त्री के लोक-निंदा की लाज नहीं, उसे कोई शक्ति नहीं सुधार सकती। यह नियम है कि जब हमारा कोई अंग विकृत हो जाता है, तो उसे काट डालते हैं, जिससे उसका विष समस्त शरीर को नष्ट न कर डाले। समाज में भी उसी नियम का पालन करना चाहिए। मैं देखता हूं कि आप मुझसे सहमत नहीं हैं, लेकिन मेरा जो कुछ विचार था, वह मैंने स्पष्ट कर दिया। आश्रम की प्रबंधकारिणी सभा का एक मेंबर मैं भी तो हूं! मैं किसी तरह इस वेश्या को आश्रम में रखने की सलाह न दूंगा।
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