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सेवासदन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :535
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8632
आईएसबीएन :978-1-61301-185

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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है


सुमन– तो आपने मेरे रहने का कोई प्रबंध किया?

विट्ठलदास– मुझसे तो कुछ नहीं हो सका, लेकिन पद्मसिंह ने लाज रख ली। उन्होंने तुम्हारा प्रण पूरा कर दिया। वह अभी मेरे पास आए थे और वचन दे गए हैं कि तुम्हें पचास रुपए मासिक आजन्म देते रहेंगे।

सुमन के विस्मयपूर्ण नेत्र सजल हो गए। शर्माजी की इस महती उदारता ने उसके अंतःकरण को भक्ति, श्रद्धा और विमल प्रेम से प्लावित कर दिया। उसे अपने कटु वाक्यों पर अत्यंत क्षोभ हुआ। बोली– शर्माजी दया और धर्म के सागर हैं। इस जीवन में उनसे उऋण नहीं हो सकती। ईश्वर उन्हें सदैव सुखी रखे। लेकिन मैंने उस समय जो कुछ कहा था, वह केवल परीक्षा के लिए था। मैं देखना चाहती थी कि सचमुच मुझे उबारना चाहते हैं या केवल धर्म का शिष्टाचार कर रहे हैं। अब मुझे विदित हो गया कि आप दोनों सज्जन देवरूप हैं। आप लोगों को वृथा कष्ट नहीं देना चाहती। मैं सहानुभूति की भूखी थी, वह मुझे मिल गई। अब मैं अपने जीवन का भार आप लोगों पर नहीं डालूंगी। आप केवल मेरे रहने का कोई प्रबंध कर दें, जहां मैं विघ्न-बाधा से बची रह सकूं।

विट्ठलदास चकित हो गए। जातीय गौरव से आंखें चमक उठीं। उन्होंने सोचा, हमारे देश की पतित स्त्रियों के विचार भी ऐसे उच्च होते हैं। बोले– सुमन, तुम्हारे मुंह से ऐसे पवित्र शब्द सुनकर मुझे इस समय जो आनंद हो रहा है, उसका वर्णन नहीं कर सकता। लेकिन रुपयों के बिना तुम्हारा निर्वाह कैसे होगा?

सुमन– मैं परिश्रम करूंगी। देश में लाखों दुखियाएं हैं, उनका ईश्वर के सिवा और कौन सहायक है? अपनी निर्लज्जता का कर आपसे न लूंगी।

विट्ठलदास– वे कष्ट तुमसे सहे जाएंगे?

सुमन– पहले नहीं सहे जाते थे, लेकिन अब सब कुछ सह लूंगी। यहां आकर मुझे मालूम हो गया कि निर्लज्जता सब कष्टों से दुस्सह है। और कष्टों से शरीर को दुःख होता है, इस कष्ट से आत्मा का संहार हो जाता है। मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसने आप लोगों को मेरी रक्षा के लिए भेज दिया।

विट्ठलदास– सुमन, तुम वास्तव में विदुषी हो।

सुमन– तो मैं यहां से कब चलूं?

विट्ठलदास– आज ही। अभी मैंने आश्रम की कमेटी में तुम्हारे रहने का प्रस्ताव नहीं किया है, लेकिन कोई हरज नहीं है, तुम वहां चलो, ठहरो। अगर कमेटी ने कुछ आपत्ति की तो देखा जाएगा हां, इतना याद रखना कि अपने विषय में किसी से कुछ मत कहना, नहीं तो विधवाओं में हलचल मच जाएगी।

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