लोगों की राय

सदाबहार >> वरदान (उपन्यास)

वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670
आईएसबीएन :978-1-61301-144

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

24 पाठक हैं

‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...


जब ज्वाला बहुत उत्तेजित हुई, तो लोग एक किनारे खड़े होकर ‘कबीर’ कहने लगे। छः घण्टे तक यही दशा रही। लकड़ी के कुन्दों से चटाक-पटाक के शब्द निकल रहे थे। पशुगण अपने-अपने खूँटों पर भय से चिल्ला रहे थे। तुलसा ने मुझसे कहा– अबकी होली की ज्वाला टेढ़ी जा रही है। कुशल नहीं। जब ज्वाला सीधी जाती है, गाँव में साल भर आनन्द की बधाई बजती है। परन्तु ज्वाला का टेढ़ी होना अशुभ है निदान लपट कम होने लगी। आँच की प्रखरता मन्द हुई। तब कुछ लोग होली के निकट आकर ध्यान पूर्वक देखने लगे। जैसे कोई वस्तु ढूँढ़ रहे हों। तुलसा ने बतलाया कि जब बसन्त के दिन होली की नींव पड़ती है, तो पहिले एक एरण्ड गाड़ देते हैं। उसी पर लकड़ी और उपलों का ढेर लगाया जाता है। इस समय लोग उस एरण्ड के पौधे को ढूँढ रहे हैं। उस मनुष्य की गणना वीरों में होती है जो सबसे पहले उस पौधे पर ऐसा लक्ष्य करे कि वह टूट कर दूर जा गिरे। प्रथम पटवारी साहब पैंतरे बदलते आये, पर दस गज की दूसी से झाँककर चल दिये। तब राधा हाथ में एक छोटा-सा सोंटा लिये साहस और दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ा और आग में घुस कर वह भरपूर हाथ लगाया कि पौधा अलग जा गिरा। लोग उन टुकड़ों को लूटने लगे। माथे पर उसका टीका लगाते हैं और उसे शुभ समझते हैं।

यहाँ से अवकाश पाकर पुरुष-मण्डली देवीजी के चबूतरे की ओर बढ़ी। पर यह न समझना, यहाँ देवीजी की प्रतिष्ठा की गई होगी। आज वे भी गालियाँ सुनना पसन्द करती हैं। छोटे-बड़े सब उन्हें अश्लील गालियाँ सुना रहे थे। अभी थोड़े दिन हुए उन्हीं देवीजी की पूजा हुई थी। सच तो यह है कि गाँवों में आजकल ईश्वर को गाली देना भी क्षम्य है। माता-बहिनों की तो कोई गणना नहीं।

प्रभात होते ही लाला ने महाराज से कहा-आज कोई दो सेर भंग पिसवा लो। दो प्रकार की अलग-अलग बनवा लो। सलोनी और मीठी। महाराज निकले और कई मनुष्यों को पकड़ लाए। भांग पीसी जाने लगी। बहुत से कुल्हड़ मँगाकर क्रमपूर्वक रखे गए। दो घड़ों में दोनों प्रकार की भांग रखी गयी। फिर क्या था, तीन-चार घण्टों तक पियक्कड़ों का ताँता लगा रहा। लोग खूब बखान करते थे और गर्दन हिला-हिलाकर महाराज की कुशलता की प्रशंसा करते थे। जहाँ किसी ने बखान किया कि महाराज ने दूसरा कुल्हड़ भरा और बोले– ये सलोनी है। इसका भी स्वाद चख लो। ...अजी पी भी लो। क्या दिन-दिन होली आएगी कि सब दिन हमारे हाथ की बूटी मिलेगी? इसके उत्तर में किसान ऐसी दृष्टि से ताकता था, मानो किसी ने उसे संजीवन रस दे दिया और एक की जगह तीन-तीन कुल्हड़ चट कर जाता। पटवारी के जामाता मुन्शी जगदम्बा प्रसाद साहब का शुभागमन हुआ है। आप कचहरी में आरायजनवीस हैं। उन्हें महाराज ने इतनी पिला दी कि आपे से बाहर हो गए और नाचने-कूदने लगे। सारा गाँव उनसे पोदरी करता था। एक किसान आता है और उनकी ओर मुस्कुराकर कहता है– तुम यहाँ ठाढ़ी हो, घर जाके भोजन बनाओ, हम आवत हैं। इस पर बड़े जोर की हँसी होती है, काशी भर मद में माता लट्ठ कन्धे पर रखे आता और सभास्थित जनों की ओर बनावटी क्रोध से देखकर गरजता है– महाराज, अच्छी बात नहीं है कि तुम हमारी नयी बहुरिया से मजा लूटते हो। यह कहकर मुन्शीजी को छाती से लगा लेता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book