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धर्म एवं दर्शन >> आदित्य हृदय स्तोत्र

आदित्य हृदय स्तोत्र

अगस्त्य ऋषि

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :34
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9544
आईएसबीएन :9781613012512

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भगवान सूर्य की आराधना


स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय  समुपस्थितम्।।1।।
दैवतैश्च  समागम्य   द्रष्टुमभ्यागतो   रणम्।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो  भगवांस्तदा।।2।।

tato yuddha parishrantam samare chintaya sthitam |
ravanam chagrato drishtva yuddhaya samupasthitam || 1
daiva taishcha samagamya drashtu mabhya gato ranam |
upagamya bravidramam agastyo bhagavan rishihi || 2

उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।। 1-2।।

Beholding Sri Rama, standing absorbed in deep thought on the battle-field, exhausted by the fight and facing Ravana who was duly prepared for the war, the glorious sage Agastya, who had come in the company of gods to witness the encounter (battle) now spoke to Rama as follows: 1-2

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