कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
इसमें न भाषा की बोझिलता
है और न अर्थ की ऊहा-पोह। अन्योक्ति के माध्यम से नेताओं द्वारा झूठे
आश्वासन देने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है। इसके लिए पवन और
बादलों का मानवीकरण किया गया है। लेकिन भाषा की सरलता का अर्थ स्थूल
गद्यात्मक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है। भाषा. की सरलता के साथ अर्थ की कई
पर्तें किसी भी कविता को श्रेष्ठता की कोटि में लाती हैं। इस संकलन के
तमाम दोहे इसी कोटि के हैं।
जब
प्यासे के आ गई, अधरों पर मुस्कान।
पानी
- पानी हो गया, सारा रेगिस्तान।।
इस प्यासे को यदि प्रेम
की लगन मान लें तो यह किसी वीतरागी की लगन है जो आनन्द में निमग्न होकर
इतनी प्रभावी हो गई है कि सब कुछ प्रेममय हो गया है। पूरा वातावरण और पूरी
प्रकृति भी प्रेममय हो गई है।
यह त्याग में भोग और भोग
में त्याग की अभिव्यक्ति है। ईशावास्योपनिषद् में कहा गया है- 'तेन
त्यक्तेन भुञ्जीथा', उस आनन्द रूप ईश्वर को साथ रखते हुये भोग करो। किसी
प्रकार की आसक्ति नहीं होनी चाहिये, अर्थात राग-विराग से रहित आनन्द की
स्थिति में जीना चाहिये, प्यासे के अधरों पर मुस्कान का तैरना आनन्द के
कारण ही तो है। इसे भक्ति या प्रेम की चरम स्थिति भी माना जा सकता है,
क्योंकि अपनी चरम स्थिति में वह अनिर्वचनीय हो जाती है, गूँगे के गुड की
तरह। गूँगे को स्वाद तो मिलता है, लेकिन वह उसे वाणी से अभिव्यक्त नहीं कर
सकता। तुलसीदास ने इसे 'गिरा अनयन नयन बिनु बानी' कह कर समझाया है। वहाँ
तो बस आनन्द है और प्यासे की मुस्कान उस आनन्द की द्योतक है। ऐसा आनन्द
जहाँ तृप्ति का जल ही जल चारों ओर दिखता है। तैत्तरीय उपनिषद् मैं 'रसो वै
स:' कह कर उस परम तत्व को रस रूप माना गया है। इसी रसरूप से भूतमात्र की
उत्पत्ति हुई है। फिर रेगिस्तान पानी-पानी क्यों नहीं होगा। भाव-सौंदर्य
का एक अन्य उदाहरण देखिये-
तुम
तो घर आए नहीं, क्यों आई बरसात।
बादल
वरसे दो घड़ी, आँखें सारी रात।।
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