कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
सपने आये
जब सपनों की चाह नहीं थी
कैसे - कैसे सपने आये
कभी तैरते फिरे हवा में
डूबे कभी नील झीलों में
कभी चाँदनी बनकर बिखरे
कभी आ गये कंदीलों में
नेहपाश जब टूट चुका है
तब क्यों मुझमें कसने आये
मधुवन चाहे जितना महके
अब मुझ को क्या लेना-देना
अर्थ नहीं रखता है कुछ भी
तट पर बंधी नाव का खेना
सुख तो मिला ग़ैर लोगों से
दुख देने सब अपने आये
आ पहुँचा उस जगह जहाँ पर
गगन नहीं है, धरा नहीं है
छवियों में है रूप तुम्हारा
सुधियों में दूसरा नहीं है
मन का कोना-कोना खण्डहर
अब क्या इसमें बसने आये
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