| धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
मैं कुछ भी नहीं कहूंगा कि परमात्मा है या नहीं, आत्मा कैसा है। मैं इतना ही कहूंगा कि जो भी है उसे जानने का उपाय है। उपाय बताया जा सकता है, उसे जानने की विधि बतलायी जा सकती है। जैसा मैं निरंतर कहता हूं, अंधे को प्रकाश नहीं बताया जा सकता, आँख सुधारने का उपाय बताया जा सकता है। अँधे का प्रकाश के संबंध में कोई सिद्धात नहीं समझाया जा सकता, लेकिन आँख के उपचार की व्यवस्था बतायी जा सकती है। आँख सुधर जाए प्रकाश दिखेगा। प्रकाश को देखना पड़ेगा, आँख सुधर सकती है। हमारे भीतर अन्य प्रज्ञा जाग्रत हो सकती है, उससे जो दर्शन होगा, वह जगत सत्य के संबंध में कुछ हमको दिखा देगा। उसके पूर्व कोई दूसरा उसे दिखाने में न समर्थ है। और अगर कोई दावा करता हो तो दावा गलत है।
... और जब हम पूछते हैं कि सन्यासी को क्या मार्ग हो? हमारा मतलब यह है कि हम सन्यासी नहीं हैं। सामान्य घर गृहस्थी में हैं। हम क्या करें? यही मतलब है न?
हम कहीं हो, मार्ग हो सकता है क्योंकि आत्मा प्रतिक्षण उपस्थित तो है मेरे भीतर। मैं बाहर धूम रहा हूं और भीतर जाने का मार्ग नहीं पाता हूं। निरंतर यह सुनने पर कि भीतर जाना है। मेरा सारा घूमना बाहर ही होता है और भीतर जाना नहीं हो पाता। तो असल में कुल इतना समझ लेना है कि बाहर मैं किन वजहों से धूम रहा हूं, कौन से कारण मुझे बाहर घुमा रहे हैं? अगर वे कारण मेरे हाथ छुट जाए तो मैं भीतर पहुँच जाऊंगा।
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