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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न-- क्या सुबह आधा घंटा करना अच्छा रहना?

उत्तर-- बहुत अच्छा है रात्रि को, जब शांति हो जाए, उस वक्त आधा घंटा बैठकर प्रयोग करना; और अगर नहीं तो सुबह अच्छा है। अगर उस वक्त थक जाते हो ज्यादा दिन भर के काम काज के बाद और बैठा रहना या आधा घंटा प्रयोग करना संभव न हो तो फिर सुबह जब उठें तो बिस्तर पर ही बैठ जाएं, उस वक्त आधा घंटा करें। या जो आपको ठीक लगे।

प्रश्न-- किसी खास स्थिति में बैठें या आराम से?

उत्तर-- नहीं नहीं, जितने आराम से बैठें उतना। कोई स्थिति की बात नहीं। आराम भी महत्वपूर्ण है। यानी अन्य किसी चीज को महत्व देने की जरूरत नहीं है, महत्व उसी प्रक्रिया को देने का है जो आपको सहज मालूम हो। लेट कर सुखद मालूम हो लेटकर कर सकते हैं। क्यों चाहे आप लेटें और चाहे आप बैठें और चाहे आप खडे़ हों, आत्मा एक ही स्थिति में है। आपके लेटने, उठने, बैठने से कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है। बस वह इतना उपयोग है कि आपकी स्थिति शरीर की ऐसी हो कि वही एक अड़चन का कारण बने। इतना ध्यान रखकर कभी भी उस प्रयोग को करें। थोडे़ ही दिन में बहुत अदभुत अनुभव होंगे।

प्रश्न-- अगर कोई विचार में दिक्कत आयी तो?

उत्तर-- नहीं उसमें कोई दिक्कत नहीं है। प्रयोग ही न करें, वही एक दिक्कत है। मेरे देखने में, जानने में एक ही दिक्कत है कि प्रयोग ही न करें। बाकी कोई दिक्कत नहीं है।

प्रश्न-- अगर विचार आए तो उसे हटा दें?

उत्तर-- हटाएंगे कैसे आप? हमको यही कठिनाई है। जो इस जगत में सारे लोगों को दिक्कत है, निर्विचार होना समझ में आ जाता है, पर वह हमको भाव यह लगता है कि निर्विचार का मतलब हटा देना। हटाइएगा कैसे? हटाना नहीं है, जागरूक होना है। विचार आया, उसको देखना, उसके द्रष्टा मात्र रह जाना। आने दें, हटाने का भाव ही छोड़ें। हटाना भी उसमें उलझ जाना है। न हटाना है, न कुछ।

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