धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
चित्त के प्रति तटस्थ जागरूक होने का प्रयोग भर सार्थक है। कुछ करना नहीं है लेकिन हमारे सारे उपदेश सुनकर हमको ऐसा लगता है कि कुछ करना है। करना भ्रामक हो जाता है। कुछ करना नहीं है। और करने का भ्रम ही हमारा असली भ्रम है। असल में हम केवल द्रष्टा मात्र हैं, इसे हम केवल देख सकते हैं। और इसे हम केवल देखने का उपयोग कर लें थोड़ा सा तो हम अचानक पाएंगे कि चित्त तो गया, बह गया। पर वह हम हटाने में लग जाते हैं। हटाने में फिर कुछ रास्ता नहीं बनता। हटाने में आप उलझ जाते हैं। और जितने आप जोर से हाथ मारते हैं, उतने जोर से उलझ जाते हैं। और तब आप फिर पच्चीस एक्सप्लेनेशंस खोज लेते हैं कि अपने पुराने पाप कर्म होंगे, फलां होगा, ढिकां होगा, इससे नहीं हो रहा है। ये सब पच्चीस बातें खोज लेते हैं। तो यह सब उस नासमझी को जो आप कर रहे हैं, छिपाने के उपाय से ज्यादा नहीं हैं। यह कोई एक्सप्लेनेशन मानने के नहीं हैं। जैसे एक घड़ी को सुधारना न जानता हो और कोई आदमी सुधारने बैठ जाए तो सोचने लगे कि पुराने कर्मों का फल है। घड़ी तो बिगड़ी चली जाती है। अभी कर्मों का उदय नहीं कि घड़ी ठीक हो। और कुल बात इतनी है कि वह टेकनीक को नहीं समझ रहा है कि घड़ी ठीक हो जाए।
ध्यान बिलकुल टेकनीक की बात है। कुछ करने की बात नहीं है समझ लेने की बात है देखें थोड़े दिन प्रयोग करके। अधैर्य हमारा इतना ज्यादा है कि हम प्रयोग नहीं कर पाते। तो थोडा धैर्य रखें, बहुत अदभुत होगा।
प्रश्न-- प्राणायाम क्या इसके लिए कुछ सहायक हो सकता है?
उत्तर-- नहीं, मेरे मानने में तो कुछ सहायक नहीं है और इसीलिए मैं हरेक चीज को इनकार कर देता हूं कि वह सहारे अगर मैं थोड़े भी मैं कहूं तो आप थोडे़ ही दिन में पाएंगे कि यह तो गौण हो गया है, वह संहार की ही आप फिकर कर रहे हैं और वही काम कर रहा है। कोई सहायक नहीं है। यानी निपट मैं, एक छोटी सी बात, बात ही आपकी दृष्टि में रखे रहना चाहता हूं। कोई भी दूसरी चीज को बीच में नहीं आने देना है। कोई सहायक नहीं है। और या तो फिर जीवन का हर काम सहायक है-- खाने, पीने, सोने उठने, बैठने से लेकर सब। प्राणायाम स्वास्थ्य के लिए सहायक होता है। स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होगा। पर वह भी बहुत सोच समझ कर करने जैसा है, नहीं तो अस्वास्थ्य लाने में उपयोगी हो जाता है।
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