धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
एक बड़ी प्यारी कविता है उसे सुनते हैं तो प्राणों के तार झनझना जाते हैं। उसे सुनते हैं तो प्राणों की वीणा बज उठती है। लेकिन पहुँच जाएं किसी व्याकरण जानने वाले के पास, किसी ग्रेमेरियन के पास। वह कहेगा क्या रखा है इसमें। कुछ शब्दों का जोड है। एक-एक शब्द तोड़कर रख देगा। मार्क ट्वेन एक अपने मित्र उपदेशक का भाषण सुनने गया था। वह उपदेशक बहुत अदभुत था। उसकी वाणी में कुछ जादू था, कोई बात थी। सुनने वालों के प्राण किसी दूसरे स्तर पर उठ जाते थे। एक डेढ़ घंटे तक मार्क ट्वेन उसे सुनता रहा। लोग मंत्र-मुग्ध थे, फिर मार्क ट्वेन बाहर निकला। उसके मित्र उपदेश ने पूछा कि कैसा लगा?
मैंने जो कहा, वह कैसा लगा? मार्क ट्वेन ने कहा कुछ भी नहीं। सब गड़बड़ था और सब उधार था। एक किताब मेरे पास है, उसमें यह सब लिखा हुआ है जो सब तुमने बोला। एक- एक शब्द लिखा हुआ है उसमें। बड़े बेईमान आदमी मालूम होते हो, इसमें तुमने कुछ भी नहीं बोला। मेरे पास एक किताब है, उसमें सब लिखा है। वह बहुत हैरान हो गया। उसने कहा, कौन-सी किताब, जिसमें यह लिखा हुआ है एक-एक शब्द? मैं तुमसे शर्त बदलता हूँ क्योंकि मैंने तो आज तक कोई किताब पढ़ी नहीं। मैंने जो कहा है, वह मैंने कहा है। मार्क ट्वेन ने उससे एक-एक हजार रुपए की शर्त बद ली। वह उपदेशक बहुत हैरान था कि यह कैसे हो सकता है। दूसरे दिन मार्क ट्वेन ने एक डिक्शनरी उसके पास भेज दी कि इसमें सब शब्द लिखे हुए हैं। जो भी तुम बोले इसमें सब लिखा हुआ है। एक-एक शब्द लिखा हुआ है। पढ़ लो और एक हजार रुपए मुझे भेज दो।
उसने विश्लेषण कर दिया। मार्क ट्वेन ठीक कहता है। डिक्शनरी में लिखा हुआ है। सभी शब्द लिए हुए हैं। जो भी दुनिया में कोई बोल सकता है, सब लिखे हुए हैं। लेकिन बोलना शब्दों का जोड़ नहीं है और न आदमी हड्डियों और मांस मज्जा का जोड़ है न फूल रसायन और खनिज का जोड़ है और न कविता व्याकरण के नियमों का जोड़ है। जिदगी चीजों का जोड़ नहीं है, जोड़ से कुछ ज्यादा है और वह ज्यादा उसको दिखाई पड़ता है जो चीजों को तोड़ता नहीं जोड़ता है। उस ज्यादा को देख लेना ही धार्मिक मनुष्य का अनुभव है।
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