धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
|
10 पाठकों को प्रिय 353 पाठक हैं |
ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
और आदमी जमीन पर न हो, तो बिल्ली का क्या नाम होगा? कोई भी नाम होगा। लेकिन बिल्ली फिर भी होगी। शब्द कोई भी न होगा, बिल्ली फिर भी होगी। आकाश में तारे होंगे, शब्द कोई न होगा। आदमी नहीं होगा तो। सूरज उगेगा लेकिन शब्द को नहीं होगा। वृक्षों में फूल खिलेंगे लेकिन कोई फूल गुलाब का नहीं होगा। कोई चमेली का नहीं होगा।
शब्द आदमी का इनवेंशन है, आदमी की ईजाद है। लेकिन शब्द से एक भ्रम पैदा होता है। मैंने सीख लिया कि इस फूल का नाम गुलाब है तो मैं समझता हूं, मैं गुलाब को समझ गया? मैंने शब्द सीख लिया कि इस फूल का नाम गुलाब है तो मैं समझता हूं, मैं गुलाब को समझ गया? शब्द सीख लेने से गुलाब को समझने का क्या संबंध है? लेकिन जो आदमी गुलाबों की जितनी जातियों का नाम जानता है, समझता हूं मैं गुलाबों का उतना ही बड़ा जानकार हूं। जितने प्रकार के गुलाबों का नाम बता सकता है, कहेगा कि मैं उतना जानकार हूं। जानकार वह किस चीज का है--गुलाब का या शब्दों का, नामों का? हो सकता है, गुलाब से उसकी कोई पहचान ही नहीं हुई हो। गुलाब को उसने जाना ही न हो कभी? गुलाब के सौंदर्य ने उसे कभी पकड़ा ही न हो, गुलाब कभी उसकी आत्मा पर चित्र न बना हो, गुलाब कभी उसके भीतर प्रविष्ट न हुआ हो। कभी वह गुलाब के भीतर प्रविष्ट न हुआ हो। उसे गुलाब का कोई पता ही न हो, लेकिन वह कहता है, मैं जानता हूं क्योंकि इस फूल का नाम गुलाब है।
हम शब्द सीख रहे हैं, और शब्दों को ज्ञान समझ रखा है। आदमी को अज्ञान में बनाए रखने का सबसे बड़ा कारण है कि आदमी ने शब्दों को ज्ञान मान लिया है। जब तक शब्दों को ज्ञान समझा जाएगा तब तक मनुष्य जाति के जीवन में ज्ञान का कोई जन्म नहीं हो सकता है। शब्द ज्ञान नहीं है। सत्य शब्द के पीछे है, सत्य शब्द के पहले है। सत्य शब्द मिट जाते हैं तब भी शेष रह जाता है। सत्य को हम शब्द देते हैं लेकिन सत्य शब्द नहीं है। लेकिन यह भूल पैदा हो जाती है।
|