धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
कैसे जकड़ रखा है? क्या है प्रक्रिया? लघनग की प्रक्रिया क्या है? तो अनलघनग की प्रक्रिया, उल्टी प्रक्रिया होगी। तो मैंने कहा, छोटा बच्चा सीखता है। कैसे सीखता है? वह कहता है, सी ए टी कैट, कैट यानी बिल्ली, दोहराता है, दोहराता है, दोहराता है। रिपीट करता है, रिपीट करता है, पुनरुक्ति करता है। पुनरुक्ति माध्यम है शब्द की गांठ बांधने का। जितना किसी चीज को दोहराएं, दोहराएं, उतना शब्द की गांठ मन पर बैठती चली जाती है। पुनरुक्ति द्वार है, रास्ता है, मैथड है लघनग का, शब्दों को सीखने का रास्ता है पुनरुक्ति, रिपीटीशन। स्मृति खड़ी होती हैं पुनरुक्ति से। तो अनुपरुक्ति से गांठ खुल सकती है, अनलघनग से शब्द भूल जा सकते हैं।
हम पुनरुक्ति तो सीख गए, बचपन में लेकिन अपुनरुक्ति हम नहीं जानते हैं कि क्या करें, क्या करें, क्या करें। एक छोटा-सा खयाल समझ में आ जाए तो अपुनरुक्ति का रास्ता समझ में आ सकता है। अनलघनग का मैथड समझ में आ सकता है। और जीवन के सत्य को जानने के लिए उसके अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।
श्री रमण से आकर किसी ने पूछा, एक जर्मन विचारक ने कि मैं क्या करूं, मैं क्या सत्य को कैसे सीखूं? हाऊ टु लर्न टी ट्रुथ? श्री रमण ने कहा, बात ही गलत पूछते हो। सत्य को सीखा नहीं जाता। इसलिए यह मत पूछो, हाऊ टू लर्न दी ट्रुथ। यह पूछो, हाऊ टू अनलर्न दी अनट्रुथ? यह मत पूछो कि सत्य को कैसे सीखें, इतना ही पूछो की असत्य को कैसे भूलें? असत्य अनलर्न हो जाए तो सत्य प्रकट हो जाता है। झील के पत्ते अलग कर दिए जाएं तो झील प्रकट हो जाती है। पर्दा अलग कर दिया जाए तो प्रकाश सामने आ जाता है। द्वार खोल दिया जाए तो हवाएं भीतर प्रविष्ट हो जाती हैं। यह मत पूछो कि हवाओं को कैसे भीतर लाए, यही पूछो कि द्वार कैसे खोलें? यह मत पूछो कि प्रकाश कहाँ खोजें, यही पूछो कि आँख कैसे खोलें। श्री रमण ने कहा, पूछो कि अनलर्न कैसे करें? जो सीख लिया है, उसे भूलें कैसे? चेतना को वापस सरल और शुद्ध कैसे करें? यही प्रश्न सबके सामने है।
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