धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
प्रश्न--स्पष्ट करें।
उत्तर--मेरे मन में खयाल है कि सारे मुल्क की मानसिक रचना को आमूल बदला जाए। तो उसके लिए जगह-जगह केंद्र खड़े किए जाएं, युवक संगठन खड़े किए जाएं और मुल्क की जो जड़ता है, चिंतन के मामले में जो कि रुक गया है, डार्मेन्ट हो गया है कहीं, उसका बहाव नहीं रहा। वह बहाव खोल दिया जाए पूरी तरह से। सारा भय छोड़कर विचार की मुक्त धारा बहा दी जाए--जो भी परिणाम हों। तो उसके लिए तो प्रेस बहुत सहयोगी हो सकता है। क्योंकि आज तो सब तक बात पहुंचाने में प्रेस के अतिरिक्त और क्या सहयोगी हो सकता है? तो यह जो दृष्टि है वह लोगों तक पहुंचा दी जा सके, लोगों को आमंत्रित किया जा सके प्रेस के द्वारा कि वे इसे डिस्कस कर सकें, मेरी बात सही है यह मान लेने की कोई जरूरत नहीं। मेरा काम इतना काफी हो जाता है कि एक प्रालब्ध भी उठा लूं तो बात हो जाएगी। मैं एक प्रश्न उठाऊं तो उस पर आप निमंत्रण भेज सकते हैं कि लोग डिस्कस करें। आप फौरन खड़ा कर सकते हैं, परिचर्चा चला सकते हैं अखबारों में, पक्ष-विपक्ष में लोग सोचें।
अभी जैसे बबई में सेक्स पर मैं बोला हूं तो उसका पूरा सारभूत आप दे सकते हैं अखबारों में आप निमंत्रण दे सकते हैं कि लोग उनके पक्ष-विपक्ष में पत्र लिखें, डिस्कस करें। मैं हमेशा तैयार हूं कि आखिर में जबाब देने को तो उनका जवाब दूं।
प्रश्न--अस्पष्ट है
उत्तर--ठीक कहते हैं, एकदम ठीक-ठीक कहते हैं। चौदह साल की उम्र तक कपड़ों में ढांकना बच्चों के साथ बहुत बड़ा अपराध है। तेरह-चौदह साल तक जब तक सेक्स मेच्योरिटी नहीं आती, बच्चों को जितना नंगा रखा जा सके, उतना हितकर है। उतना ही बाद में उनके जीवन में शरीर के प्रति जो एक पागल आकर्षण पैदा होता है वह नहीं पैदा होगा। नंगी तस्वीरों को देखने का जो मोह पैदा होता है वह नहीं पैदा होगा। सारा अश्लील साहित्य मर जाए जिस दिन हम बच्चों को चौदह साल तक नंगा रख लें उसके बाद अश्लील साहित्य बिक नहीं सकते। कोई खरीदने को नहीं मिलेगा।
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