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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

एक घटना मुझे याद आती है-- अकबर के पास दो राजपूत लड़के गए। उम्र कोई बीस वर्ष है। दोनों जुड़वा भाई हैं और उन्होंने जाकर, अकबर से जाकर कहा कि हम दो बहादुर लड़के हैं, और नौकरी की तलाश में आए हैं। अकबर ने ऐसे ही मजाक में पूछा कि बहादुरी का कोई प्रमाण पत्र है? कैसे हम समझें कि तम बहादुर हो? उन दोनों की आँखों में एकदम आग चमक गयी। उन्होंने बहादुरी का प्रमाणपत्र कहीं सुना है? और कोई बहादुर आदमी किसी दूसरे से प्रमाणपत्र लिखाने जाएगा कि मैं बहादुर हूं? अगर कोई लिखता है तो उसको कायर समझ लेना और उन्होंने तलवार निकाली और वे तलवारें एक दूसरे के छाती में घुस गयी। दोनों भाई थे। फव्वारा छूट गया, रक्त का, नीचे गिर पड़े। अकबर तो घबड़ा गया। उसने अपने सेनापतियों को बुलाया राजपूतों को कि यह क्या हो गया? यह तो बड़ी मुश्किल हो गयी। मैंने तो सिर्फ प्रमाणपत्र पूछा था। उन सेनापतियों ने कहा, राजपूतों से प्रमाण पत्र पूछना होता है। प्रमाणपत्र एक ही है कि हम मरने को हमेशा तैयार हैं, उसके सिवा और क्या प्रमाण हो सकता है? बहादुर आदमी का प्रमाणपत्र क्या है-- कि हम मरने को हमेशा तैयार हैं। जीने का कोई मोह नहीं ऐसा कि हम उसके लिए कुछ खोने को तैयार हों। सब खो सकते हैं-- जीने को भी खो सकते हैं, दांव पर लगा सकते हैं।

तो छोटे बच्चों को, मेरी दृष्टि में, दूसरी ट्रेनिंग का हिस्सा है, जीवन को दांव पर लगाने की। वह तो मेरा कहना यह है कि यह तो बढ़ाते जाना चाहिए जबकि युनिवर्सिटी के लेवल पर बच्चा बाहर न निकले। तो वह तो कर देना चाहिए जितनी जल्दी हो सके। के जी शुरू करना चाहिए। डेवलपमेंट होंगे उसके तो। के जी के बच्चे कोई समुद्र में नहीं फेंक देना है, लेकिन के जी के बच्चे को भी अंधेरे में भेजा जा सकता है, दरख्तों पर चढ़ाया जा सकता है, उसकी हिम्मत बढ़ायी जा सकती है, जहाँ उसको हमेशा यह लग सके कि मर सकता हूं, लेकिन मरने की फिकर नहीं करनी है। जो करना है, वह इतना जल्दी बीजारोपण करना है कि युनिवर्सिटी के लेवल तक आते-आते हम उसको उस हालत में खड़ा कर दें कि वह अपने को बहादुर कह सके, तो हम करेक्टर खड़ा करेंगे, क्योंकि सोसाइटी है इम्मारल।

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