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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न-- अस्पष्ट

उत्तर-- समझा, समझा। पहले तो कमजोर बच्चे को स्वस्थ बनाने की पूरी चेष्टा करनी चाहिए। मेरा कहना है सौ में से अस्सी बच्चे तो ठीक हो सकते हैं जो बीस बच्चे बचते हैं उनको भी हम दिशा दे सकते हैं। जैसा मेरा कहना है, स्कूल टीचर है स्कूल टीचर के लिए कोई बहुत शक्तिशाली आदमी की जरूरत नहीं है। शक्तिशाली आदमी स्कूल के टीचर बनें, यह फिजूल की बात है। यह ऐसा काम है इसमें साधारण स्वास्थ्य का आदमी भी ठीक है।

प्रश्न-- अस्पष्ट

उत्तर-- क्योंकि सारे लोग समान नहीं हैं, और समान हो भी नहीं सकते हैं। मैं समझता नहीं, वे शब्द जो हैं हमारे, वे इतने गंदे हो चुके हैं, उसका उपयोग भी नहीं करना चाहिए। वे दोनों भाई हैं और बहादुरी का सवाल नहीं है, वे दोनों यह बताना चाह रहे हैं कि मौत को हम हाथ में लिए हुए हैं।

और साहस का यह अर्थ है कि आदमी जिंदगी को इतना मूल्यवान नहीं सकता कि उसे भी किसी क्षण खोने से झिझकता हो और डरता हो। जो मैं उस उदाहरण से कहने वाला हूं, कोई उदाहरण पूरा नहीं है। उदाहरण से जो मैं कहने वाला हूं वह यह कि करेज का मतलब क्या है आध्यात्मिक अर्थों में। करेज का आध्यात्मिक अर्थों में एक ही मतलब है कि ऐसा आदमी जो मौत से किसी भी क्षण और किसी भी कारण से भयभीत नहीं है। जो मौत को ऐसे ही अंगीकार कर सकता है जैसे किसी प्रेमी को अंगीकार कर रहा हो। लेकिन इससे ज्यादा मेरा कहने का मतलब नहीं है। उसमें जितना आप सोच सकते हैं सोचें, उसमें मेरा एतराज भी नहीं है कह कुल इतना रहा हूं कि मौत को साक्षात् करने की क्षमता विकसित होनी चाहिए बच्चों में, तो हम चरित्र, तो हम व्यक्तित्व और तो एक जातीय गुण पैदा कर सकेंगे जो कि बिलकुल खो गया है।

और मेरी अपनी दृष्टि यह है कि हमारी सारी शिक्षा, आज तक की सारी संस्कृति कायरता पैदा करती है, साहस पैदा नहीं करती। और कायरता के कारण इतनी चरित्रहीनता पैदा हुई है, यह बाई प्रोडक्ट है। हम बात करते हैं, आत्मा अमर है, फला हैं ढिकां है, लेकिन हम इसलिए बातें करते हैं आत्मा की अमरता की, कि हमको मौत का डर है; और कोई कारण नहीं है। मैं यह नहीं कह रहा कि आत्मा अमर नहीं है। हम जो बातें करते हैं आत्मा की अमरता की वह सिर्फ मौत का भय और डर है। और उस डर का हमने इतना पोषण किया है, इतना पोषण किया है कि एक एक आदमी बिलकुल भयभीत है मरने से। और इस भय में जो आदमी खड़ा हुआ है, उससे आप कुछ करवा सकते हैं। एक आदमी उसकी जोर से गर्दन पकड़ ले और कहे मार डालेंगे, अदालत में चलकर हमें यह कह दो, वह आदमी तैयार है। उसको दिखायी पड़े कि मैं फंस जाऊगा, वह झूठ बोलने को तैयार है, बेइमानी करने को तैयार है।

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