धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
जीवन वैसा ही दिखाई पड़ता है जो हमारे भीतर है। लोग मुझसे आकर पूछते हैं, ईश्वर है? ईश्वर कहाँ है? मैं उनसे कहता हूँ, ईश्वर नहीं है, ईश्वर नहीं हो सकता, क्योंकि तुम्हारे भीतर आनंद का भाव नहीं है। वह तो आनंद के भाव में देखी गयी सत्ता है। यही जीवन, यह पौधे, यही पशु, यही पक्षी, यही मनुष्य, यही सब कुछ जिस दिन आनंद के भाव से देखा जाता है तो परमात्मा हो जाता है। संसार और परमात्मा दो नही हैं, एक ही अस्तित्व को दो ढंग से देख जाने पर--दुःख के ढंग से देखे जाने पर संसार है, आनंद के ढंग से देखे जाने पर परमात्मा है।
तो जिन लोगों ने हमें यह सिखा दिया है जीवन दुःख है, बुरा है, असार है, छोड़ो भागो, जीवन से हटो, जीवन की सारी धाराएं तोड़ दो, सब खंडित कर दो, जीवन के सेतु अपने बीच सब तोड़ दो, सेतु दो। जिन लोगों ने यह सिखाया वे लोग सोचते रहे होंगे कि मनुष्य जाति को परमात्मा की ओर ले रहे हैं, लेकिन वे ही लोग मनुष्य जाति को परमात्मा से वंचित करने का कारण बन गए हैं। उन्होंने किस भांति सिद्ध कर दिया है कि जीवन दुख है? किसी भी चीज को व्यर्थ सिद्ध करने का सीक्रेट है, एक राज है, एक रास्ता है। और एक ही रास्ता है किसी भी चीज को व्यर्थ सिद्ध कर देने का। और जिस आदमी को वह तरकीब हाथ में आ जाए वह किसी भी चीज को व्यर्थ सिद्ध कर सकता है। वह तरकीब है विश्लेषण, वह तरकीब है एनेलिलिस।
मैं एक गाँव में गया। एक बहुत सुंदर जल प्रपात था वहाँ। पहाड़ से एक बहुत खूबसूरत नदी गिरती है। चांदनी रात में जिन मित्र के घर मैं मेहमान था, वे अपनी कार में मुझे लेकर उस पहाड़ी पर गए। रास्ता थोड़ी दूर ही पहले खत्म हो जाता; फिर थोड़ी दूर पैदल जाना पड़ता था। पूर्णिमा की रात थी और उस नदी का पहाड़ से गिरना और उसका गर्जन दूर तक सुनायी पड़ता था। हवाएं ठंडी हो गई थीं और उस चांदनी रात में वह नदी एक अदभुत आकर्षण की तरह हमें खींचे लिए जाती थी। हम गाड़ी से नीचे उतरे। गाड़ी को जो ड्राइवर साथ लाया था वह गाड़ी के भीतर ही बैठा रहा। मैंने अपने मित्र को कहा, आप अपने ड्राइवर को भी बुला लें। मैंने उस ड्राइवर को आवाज दी कि दोस्त तुम भी आ जाओ। उसने कहा, क्या खाक रखा है वहाँ? कुछ पत्थर पड़े हैं, और पानी गिरता है, और वहाँ कुछ भी नहीं है। और वह ड्राइवर कहने लगा, मैं तो हमेशा हैरान होता हूँ कि लोग क्या देखने आते हैं। वहाँ कुछ भी नहीं है साहब, थोडे से पत्थर पड़े हैं और पानी गिरता है।
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